HBSE Class 10 इतिहास ( भारत एवं विश्व ) Chapter 2 – प्राचीन विश्व की प्रमुख सभ्यताएं Notes
प्राचीन विश्व की प्रमुख सभ्यताए :
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⭐ 1. मिस्र की सभ्यता |
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भौगोलिक एवं
पुरातात्विक स्रोत राजनीति
व्यवस्था प्रशासनिक
व्यवस्था अर्थव्यवस्था
एवं वाणिज्य संस्कृति
एवं धर्म |
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⭐2. मेसोपोटामिया की सभ्यता |
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भौगोलिक एवं
पुरातात्विक स्रोत राजनीति
व्यवस्था प्रशासनिक
व्यवस्था अर्थव्यवस्था
एवं वाणिज्य संस्कृति
एवं धर्म |
⭐ 3. यूनानी सभ्यता | |
भौगोलिक एवं पुरातात्विक स्रोत राजनीति व्यवस्था प्रशासनिक व्यवस्था अर्थव्यवस्था एवं वाणिज्य संस्कृति एवं धर्म | |
⭐ 4. रोमन सभ्यता | |
भौगोलिक एवं पुरातात्विक स्रोत राजनीति व्यवस्था प्रशासनिक व्यवस्था अर्थव्यवस्था एवं वाणिज्य संस्कृति एवं धर्म | |
⭐ 5. चीन की सभ्यता | |
भौगोलिक एवं पुरातात्विक स्रोत राजनीति व्यवस्था प्रशासनिक व्यवस्था अर्थव्यवस्था एवं वाणिज्य संस्कृति एवं धर्म | |
⭐ 6. माया की सभ्यता | |
भौगोलिक एवं पुरातात्विक स्रोत राजनीति व्यवस्था प्रशासनिक व्यवस्था अर्थव्यवस्था एवं वाणिज्य संस्कृति एवं धर्म | |
प्राचीन विश्व की प्रमुख सभ्यताए :
- पहला उत्तर मिस्र अथवा नील नदी के मुहाने का राज्य (उत्तर मिस्र की राजधानी ‘बूटो’ व राजचिह्न ‘मधुमक्खी’ था।)
- दूसरा दक्षिण मिस्र अथवा नील नदी की घाटी का राज्य। (दक्षिण मिस्र की राजधानी ‘तैखेबे’ व राजचिह्न ‘पपाइरस का गुच्छा’ था।)
मिस्र के इतिहास को जानने के साधन:-
- साहित्यिक साधन – हेरोडोटस, डायोड्स, मेनेथो
- पुरातात्विक साधन – पिरामिड, समाधियां, भित्ति चित्र, मंदिर, रोसेटो अभिलेख
- आधुनिक साधन – एडोल्डफ इरमान व जे. एस. ब्रस्टेड की पुस्तकें।
राजनीति व्यवस्था:-
मिस्र का राजा ‘फराओ’ कहलाता था। फराओ को न्याय और ईश्वर का प्रतिनिधि माना जाता था। मिस्र के राजनीतिक इतिहास को तीन भागों में बांटा जा सकता है:-
- प्राचीन काल या पिरामिड युग (3400 ई.पू. -2160 ई.पू.)
- मध्यकाल या सामंतवादी युग (2160 ई.पू. – 1580 ई.पू.)
- नवीनकाल या साम्राज्यवादी युग (1580 ई.पू. – 650 ई.पू.)
- नरमेर
- अट्टा
- जोसर
- इमहोटेप (मिस्र में पिरामिड को बनाने का श्रेय)
- खुफू
- यूसरेकाफ
- खाफ्रे
- इंटे
- मेतुहोतेप
- अमनहोतेप
- सेनवो
- सरेत
- अमेनहोटेप द्वितीय
- अहमोज प्रथम
- थुटमोस प्रथम
- अमेनहोटेप तृतीय
- हातशोपसुत (महिला शासिका)
- फराओ ( राजा ) – राजा निरंकुश तथा सुरक्षा कार्य शासक था शासन की समस्त शक्तियां उसके हाथों में थी और लोग उसको देवता मानते थे।
- वजीर – वजीर शासन संचालन के कार्य में फराओं की सहायता करता था उसका मुख्य कार्य लगान वसूल करना एवं आय-व्यय का हिसाब रखना था।
- सैन्य संगठन – मिस्र के फराओं के पास कोई स्थाई सेना नहीं होती थी। बारवी राजवंश के समय फराओ ने स्थाई सेना की व्यवस्था की।
- परिषद – फराओ के दरबार में वृद्ध दरबारियों की अलग परिषद थी, जिसे सारू कहते थे जो राजाओं को परामर्श दिया करते थे।
- प्रांतीय शासन – फराओ ने शासन की सुविधा के लिए साम्राज्य को कई प्रांतों में बांटा हुआ था प्रत्येक प्रांत को नोम तथा उसके शासक को नोमार्क कहते थे।
- स्थानीय शासन – स्थानीय शासन प्रबंध सामंतों के हाथों में था। नगरों में एक प्रशासनिक अधिकारी भी होता था जो शांति बनाए रखने और कर वसूलने का काम करता था।
- न्याय व्यवस्था – फराओ मुख्य न्यायाधीश होता था। मुकदमा लिखित रूप में चला जाता था और फराओ मुकदमे का फैसला तीन दिन में ही कर देता था। अपराधी को कठोर सजा दी जाती थी।
- मिस्र एक कृषि-प्रधान देश था। यहाँ की मुख्य उपज गेहूँ, जौ, कपास, सण और फलों में अंगूर, अंजीर एवं खजूर आदि थे।
- मिस्र के लोग पशुओं को पालते थे। वे गाय, भेड़, गधा, बछड़ा, बन्दर और मुर्गी आदि पालते थे।
- मिस्रवासी अनेक प्रकार के उद्योग-धन्धों में प्रवीण थे।
- पत्थर काटने, गहने एवं बर्तन बनाने, तांबे तथा कांसे के हथियार बनाने एवं लकड़ी का फर्नीचर बनाने में कुशल थे।
- नाव एवं जहाज के निर्माण में भी निपुण थे।
- पेपिरस नामक घास के पौधों से कागज बनाया जाता था
- मिम्र में वाणिज्य और व्यापार का भी बहुत विकास हुआ। वहाँ आन्तरिक व्यापार नील नदी कं द्वारा होता था। मिय्र, भारत और अरब से मसाले, रंग, तेल, पाउडर और चन्दन मंगवाता था। पशुओं का भी लेन-देन किया जाता था।
- मिस्रवासी बहुदेववादी थे और प्रकृति क॑ विभिन्न रूपों की पूजा करते थे। मिम्र में कुल मिलाकर तीन हजार देवता थे। मिस्र का सबसे बड़ा देवता सूर्य था। जिसे रे, रा, होरस, एवं एमन आदि कई नामों से पुकारा जाता था। सूर्य क॑ बाद नील नदी के देवता “ओसिरिस' का प्राधान्य था। मिस्रवासी नूत (आकाश का देवता) तथा सिन (चन्द्रमा) की भी उपासना करते थे।
- फारस की खाड़ी के उत्तर में स्थित आधुनिक ईराक को प्राचीन काल में मेसोपोटामिया कहते थे। मेसोपोटामिया यूनानी भाषा का शब्द है। यह दो शब्दों ‘मेसो’ और ‘पोटम’ से मिलकर बना है। ‘मेसो’ का अर्थ मध्य तथा ‘पोटम’ का अर्थ नदी होता है इस प्रकार मेसोपोटामिया का शाब्दिक अर्थ दो नदियों के बीच का भाग होता है।
- मेसोपोटामिया क्षेत्र में विकसित होने वाली सभ्यताएं सुमेरियन, बेबीलोनियन और असीरियन थी। इन सभ्यताओं के बारे में माना जाता है कि सुमेरिया ने सभ्यता को जन्म दिया, बेबीलोन ने उसे चरम सीमा पर पहुंचाया और असीरिया ने इसे ग्रहण करके प्रगति की।
- ➭ बेहिस्तून अभिलेख
- ➭ रोसेटा अभिलेख
- ➭सूसा अभिलेख
- ➭धार्मिक साहित्य
- ➭उर, एरिडु, लगाश, निप्पुर आदि नगरों की खुदाई से मिलने वाली सामग्री
- ➭मिट्टी की पट्टी गांव पर खुदे लेख, जिगुरात
- ➭हम्मूराबी की संहिता
- 4500 ई.पू. फारस की सुमेरियन जाति के लोगों ने मेसोपोटामिया पर आक्रमण किया और अपना अधिकार कर लिया। सुमेरिया में उस समय उर, निपुर, लगाश, उरुक आदि नगर राज्य थे। प्रत्येक नगर का अपना देवता था। नगर राजू के स्वतंत्र शासकों को पटेसी कहते थे। पटेसी का मुख्य कार्य भूमि कर वसूल करना, बाहरी आक्रमण से नगर की रक्षा करना और जनता के मुकदमों का निर्णय देना था। इस सभ्यता के लोगों ने एक लिपि का आविष्कार किया जिसे ‘किलाक्षर लिपि’ कहा जाता है।
- मेसोपोटामिया के दक्षिणी भाग में हेमराइट नदी के किनारे बेबीलोनिया की सभ्यता का विकास हुआ। 2200 ई.पू. में सेमेटिक लोगों की एक शाखा एमराइट ने सुमेर पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। लगभग 100 वर्षों के निरंतर युद्ध के पश्चात इस जाति के महान राजा हम्मूराबी ने मेसोपोटामिया पर अधिकार करके उसे राजनीतिक एकता में बांधा और बेबीलोन को अपनी राजधानी बनाया। उसने अपने साम्राज्य की प्रगति को चरम सीमा तक पहुंचा दिया ( सामी भाषा बोलने वाली जाति को सेमेटिक कहते हैं।)
- सेमेटिक लोगों ने दजला नदी के ऊपरी तट पर अधिकार करके अशुर नगर बसाया। यहां का प्रथम शक्तिशाली राजा तिगलथ पिलेसर प्रथम था। अशुर बनिपाल असीरिया का अंतिम प्रतापी और प्रसिद्ध शासक था। उसने अपने समय में व्यापार शिक्षा और कला में असाधारण उन्नति की और अपनी राजधानी में भव्य महलों और मंदिरों का निर्माण करवाया। असीरिया का प्रत्येक राजा पुराने महल को त्यागकर अपने लिए नए महल का निर्माण करवाता था।
- इस सभ्यता में शासक निरंकुश होते थे तथा साम्राज्य में उनका पूर्ण नियंत्रण होता था। वे दैविक सिद्धांत के आधार पर शासन करते थे। वे सर्वोच्च सेनापति, न्यायाधीश व सर्वोच्च पदाधिकारी होते थे। वे शासन के संचालन के लिए साम्राज्य को कई प्रांतों में बांट देते थे और प्रांत के गवर्नर का चयन स्वयं करते थे। गवर्नर अपने प्रांत से कर इकट्ठा करना, शांति बनाए रखना और युद्ध में शासक का सहयोग करने का काम करता था।
- उस समय का समाज तीन वर्गों उच्च वर्ग, मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग में बटा हुआ था। उच्च वर्ग में राजा, उच्च पदाधिकारी व पुरोहित होते थे। मध्यम वर्ग में सामंत और व्यापारी व निम्न वर्ग में दास तथा किसान शामिल थे।
- मेसोपोटामिया के लोग बहुदेववादी थे। वे खेत, नदियों, पहाड़ों की पूजा करते थे। उनके प्रमुख देवता अनु (आकाश का देवता ), की ( पृथ्वी ), सिन ( चंद्रमा ), तम्मुज ( वनस्पति और कृषि का देवता ), ईश्तर ( प्रेम की देवी ), नरगल ( प्लेग का देवता ) आदि थे। इन देवताओं को प्रसन्न करने के लिए बलि भी दी जाती थी।
- इस सभ्यता के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि था। इसमें गेहूं, जौ, जैतून, कपास व अंगूर की खेती थी। उस समय के लोग उद्योग एवं व्यापार में भी उन्नत थे। व्यापार सोना चांदी और तांबे के टुकड़ों से होता था। यहां पशुओं में ऊंट और बकरी विशेष थी। यहां लकड़ी की सुंदर नक्काशी के साथ साथ सोना, चांदी व कीमती पत्थर पर भी नक्कासी की जाती थी।
- अंधकार युग या होमर युग ( 1200 ई.पू. से 800 ई.पू. )
- लोह युग या नगर राज्य युग ( 800 ई.पू. से 500 ई.पू. )
- हैलेनिस्टिक युग ( 500 ई.पू से 200 ई.पू. )
- होमर द्वारा रचित महाकाव्य इलियड व ओडिसी।
- हेरोडोटस की रचना हिस्टोरिका।
- एथेंस, कोरिंथ, स्पार्टा, थीब्स आदि नगरों की खुदाई से मिलने वाली सामग्री।
- थ्यूसीडाइडीज की रचना पेलोपोनेशियन युद्ध
- प्लेटो एवं अरस्तु की रचनाएं।
- इस सभ्यता में राजवंशों के शासकों ने शासन किया। राजा निरंकुश होते थे और प्रजा राजा को ईश्वरतुल्य मानती थी। राजा ‘ब्यूल’ नामक परिषद के परामर्श से शासन का संचालन करता था। सिकंदर का समय विश्व इतिहास में हेलेनिस्टिक युग के नाम से प्रसिद्ध है। सिकंदर ने 336 ई.पू. में अपने पिता फिलिप का वध कर दिया और मुखदूनिया ( मेसिडोनिया ) का शासक बन गया। उसने यूनान में हुए विद्रोह को कुचल दिया और समस्त यूनान पर अपना अधिकार कर लिया।
- स्वतंत्र नागरिक
- विदेशी नागरिक
- दास
- यह वर्ग विशाल भू संपत्ति का स्वामी था और इसके पास बहुत बड़ी संख्या में दास होते थे। यह वर्ग युद्ध के समय नेतृत्व करता था।
- इस वर्ग में साधारण नागरिक शामिल थे जिन्हें फ्रीमैन अथवा परोआसी कहा जाता था। यह वर्ग व्यापार एवं वाणिज्य में भूमिका निभाता था।
- इस वर्ग में मजदूर शामिल थे। जिन्हें थीट्स कहा जाता था।
- इस वर्ग में दास शामिल थे जिन्हें हटोल कहा जाता था।
- यूनान का व्यापार दूर-दूर तक होता था। यूनानी लोगों के उद्योग मिट्टी में धातु के बर्तन बनाना, अस्त्र-शस्त्र बनाना, फर्नीचर बनाना, जैतून से तेल बनाना और अंगूर से शराब बनाना आदि प्रमुख थे। इस सभ्यता में कृषि पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता था। यूनान के पहाड़ों में सोना, चांदी और लोहा निकलता था।
- यूनान के लोग बहुदेववादी थे। यह लोग प्राकृतिक शक्तियों एवं जानवरों की पूजा करते थे और उनका विश्वास भूत प्रेत में भी था।
इनके मुख्य देवता
- जियस ( आकाश का देवता )
- अपोलो ( सूर्य )
- हर्मस ( व्यापार का देवता )
- पोसीडोन ( समुंद्र का देवता )
- मार्स ( युद्ध का देवता )
- डेमीटर ( अन्न की देवी )
- राजतंत्र काल ( 753 ई.पू. से 509 ई.पू. )
- गणतंत्र काल ( 509 ई.पू. से 133 ई.पू. )
- सैनिक अधिनायकों का काल ( 133 ई.पू. से 27 ई.पू )
- साम्राज्यवादी काल ( 27 ई.पू. से 476 ई. )
- इस काल में राजा राज्य का अध्यक्ष होता था उसके अधिकार असीमित थे। इस समय समाज दो वर्गों में विभक्त था पेट्रीशियन वर्ग एवं प्लेबियन वर्ग। पेट्रिशियन वर्ग में लाइट इन लोग थे जो रूम के वास्तविक निवासी थे। इस वर्ग में रूम के उच्च एवं कुलीन परिवार के व्यक्ति आते थे। दूसरे वर्ग, प्लेबियन में स्वतंत्र दास भूमिहीन और गरीब व्यक्ति आते थे।
- 12 पट्टिकाओं पर लिखे लेख – ट्वेल्व टेबल्स।
- रोम के पुरोहितों द्वारा लकड़ी की तख्तियां पर लिखे लेख – एनल्स पोंटीफिकम।
- लिवि की रचनाएं – पालिबियस व डिओडोरस के लेख।
- रोम की शासन व्यवस्था जनता द्वारा चुनी हुई सीनेट के हाथों में केंद्रित थी। सीनेट के सदस्यों की संख्या 300 थी परंतु यह सभी सदस्य पेट्रिशियन वर्ग के होते थे। सीनेट द्वारा दो न्यायाधीश नियुक्त किए जाते थे जिन्हें ‘कौंसल’ कहते थे जिनका कार्यकाल एक वर्ष का होता था। इसके अतिरिक्त प्रशासन में सहायता देने के लिए तीन पदाधिकारी भी होते थे – सेन्सर्स ( कर वसूल करने वाले अधिकारी ), एल्डीज ( शांति व्यवस्था बनाए रखने वाले ) और प्रोटोर ( न्यायाधीश )। गवर्नरों को वेतन ना मिलने के कारण वे जनता से मनमाना कर वसूल करते थे।
- रोमन लोगों का प्रमुख व्यवसाय कृषि एवं पशुपालन था। वे गेहूं, जौ, बाजरा, अंगूर, जैतून, सेब जैसी फसलें उगाते थे। यहां पर लोग वस्त्र उद्योग बर्तन उद्योग सोना चांदी के आभूषण बनाने के कार्य भी करते थे। ये लोग भारत से मलमल, अफ्रीका से धातु, चीन से रेशम, यूनान से लोहे का व्यापार भी करते थे।
- रोम में परिवार संयुक्त होते थे। परिवार के सदस्यों को उनके मुखिया की आज्ञा का पालन करना पड़ता था। वे लोग देवताओं के अपेक्षा आत्माओं पर अधिक यकीन करते थे।
- जुपिटर (शांति का देवता)
- मार्स (युद्ध का देवता)
- वीनस (प्रेम की देवी)
- वेस्टा (अग्नि देवता)
- अपोलो (संगीत व कला का देवता)
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- पौराणिक कथाएं
- कन्फ्यूशियस द्वारा रचित भूचिंग व भीचिंग ( काव्य संग्रह )।
- पुरापाषाण अवशेष
- अस्थि अभिलेख
- मृदभाण्ड, ध्वनिबोधक चित्र
- चीन में राजा को ‘वांग’ कहा जाता था। वह सबसे बड़ा न्यायधीश और पुरोहित होता था। जनता उसे अपना पिता समझती थी और उसे ईश्वर पुत्र कहकर उसकी पूजा करती थी।
- वांग ने शासन कार्य के लिए मंत्री परिषद का गठन किया जिसमें चार मंत्री होते थे जो राजा को परामर्श देते थे। इसके अतिरिक्त छह सदस्यों की परिषद भी होती थी। जैसे- लोक सेवा समिति, माल व वित्त समिति, संस्कार व उत्सव समिति, युद्ध व रक्षा समिति, दंड व न्याय समिति तथा सार्वजनिक हित समिति।
- दो या तीन ‘हिन’ ( गांवों का समूह ) का एक ‘फू’ बनता था जो प्रांत के समान होता था। इनकी शासन व्यवस्था एक न्यायाधीश और एक राज्यपाल चलाता था।
- चीन के लोग कृषि और पशुपालन का कार्य करते थे। यहां बाजरा, चावल, गेहूं तथा फलों की खेती होती थी। उपजाऊ भूमि पर नौ परिवार मिलकर सामूहिक रूप से खेती करते थे जिसे चिंगतियेन प्रणाली कहा जाता था।
- चीन के लोगों का मुख्य व्यवसाय रेशम उद्योग था। कुछ लोग मछली पकड़ने का व्यवसाय भी करते थे। चीन के लोग अपने व्यवसाय बदलने को पाप समझते थे।
- चीन का व्यापार के क्षेत्र में बहुत विकास हुआ। सम्राट शी हुआंग टी ने व्यापार के लिए सड़कों का जाल बिछा दिया। यहां व्यापारियों के संघ बने हुए थे जो विदेशों से उन, तंबाकू, शीशा, कीमती पत्थर मंगवाते थे तथा चीनी मिट्टी के बर्तन, बारूद व ताश विदेशों में भेजते थे।
- चीनियों के अनुसार संसार के निर्माता पानकू ने समाज के चार वर्ग बनाएं। प्रथम वर्ग मंदारिन का था। इसमें विद्वान, अध्यापक, उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति आते थे। दूसरा वर्ग किसानों का, तीसरा वर्ग कारीगरों का, चौथा वर्ग व्यापारियों का था।
- चीन के विद्वान एकेश्वरवादी तथा जनता बहुदेववादी थी। यहां प्रकृति की पूजा की जाती थी। उनके प्रमुख देवता यंग ( आकाश का देवता ), चीन ( वायु तथा पृथ्वी का देवता ) थे। चीनी लोग भूत-प्रेत अपशगुन में जादू टोने में विश्वास करते थे। छठी शताब्दी ई.पू. में भारत से यहां बौद्ध धर्म का भी काफी प्रसार हुआ।
- माया सभ्यता में स्थित नगरों की खुदाइयों से मिलने वाले पुरावशेष
- मिट्टी के बर्तन
- नक्काशी
- कलात्मक वस्तुएं व ग्लिफ
- रासहीथर की रचना
- प्राचीन माया: नया परिप्रेक्ष्य
- माया किताबें या कोडिसिस
- इस सभ्यता में राज्यों के मुखिया ‘असली पुरुष’ या ‘हेलेक यूनिक’ के नाम से जाने जाते थे। इनका पद अनुवांशिक था। इन मुखिया के अधीन शहरों के सरदार थे जिन्हें बाताबोब कहते थे। बाताबोब अपने शहर के शासन की देखरेख करते थे। जरूरत पड़ने पर बात आप लोग सेना का नेतृत्व भी करते थे।
- माया सभ्यता का पंचांग 3114 ई.पू. शुरू किया गया था इस कैलेंडर में हर 394 वर्ष के बाद बाकतुन नाम के एक काल का अंत माना चाहता था। देवताओं के चित्र गचकारी मुखोटे से बनाए जाते थे और उनकी पूजा मंदिरों में की जाती थी। देवताओं को खुश करने के लिए बलि भी दी जाती थी। यहां नगर व राज्यों के अपने-अपने देवता होते थे।
- लोगों का मुख्य कार्य कृषि व पशुपालन था। ये लोग गेहूं, जौ, चना, गन्ना, नारियल आदि फसलें उगाते थे और इसके साथ-साथ गाय व बकरी पालते थे। माया वासियों ने चौड़ी सड़कें बनवाई थी जो ‘स्केब’ या ‘स्केबओब’ के नाम से जानी जाती थी। किसानों के घर कच्चे होते थे जब की बाताबोब के घरों में सुंदर नक्काशीदार लकड़ी का प्रयोग होता था। माया सभ्यता में नाव, सूती वस्त्र, तांबे की घंटियां, तलवार में आभूषण बनाने के कार्य होते थे।




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