Download PDF file
प्रश्न 1 हड़प्पा की खोज किसने और कब की थी ?
उत्तर.हड़प्पा स्थल की खोज भारतीय पुरातत्ववेत्ता दयाराम साहनी ने की थी और उन्होंने 1921 में इस कार्य का पर्यवेक्षण किया था। इसी प्रकार, राखलदास बनर्जी ने अगले साल 1922 में मोहनजोदड़ो की खुदाई की थी, जिससे हड़प्पा सभ्यता की जानकारी मिली।
प्रश्न .2 मोहनजोदड़ो का अर्थ क्या है ? इसकी खोज किसने की ?
उत्तर. हड़प्पा सभ्यता की खोज भारतीय पुरातत्वविद् दयाराम साहनी ने 1921 ईस्वी में की थी, जिन्होंने उस वर्ष रावी नदी के तट पर स्थित हड़प्पा नामक स्थान पर उत्खनन का नेतृत्व किया था
प्रश्न .3 मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताओं का वर्णन करें। (5 Times in Board Exam)
उत्तर.
नगर की योजना: मोहनजोदड़ो का शहर सुव्यवस्थित था, जिसमें चौड़े सड़क जाल और योजनानुसार घर बने थे। मुख्य मार्ग सीधे और चौड़े थे।
नालिकाकरण प्रणाली: पूरे शहर में प्रभावशाली नालिकाकरण प्रणाली थी जिससे स्वच्छता बनी रहती थी।
निर्माण सामग्री: घरों का निर्माण ईंटों से किया जाता था जो नियमित आकार और आकारों में निर्मित होते थे।
औद्योगिक गतिविधियाँ: यह स्थल शिल्पकला, धातुकर्म, और गढ़ाई की कला का केन्द्र था।
सामाजिक व्यवस्था: सामाजिक समानता और नियोजित प्रशासन की स्पष्ट झलक मिलती है।
प्रश्न .4 नृत्य करती हुई लड़की की कांसे की मूर्ति कहाँ से प्राप्त हुई थी
(अ) हड़प्पा से (ब) मोहनजोवड़ो से
(स) चन्ह॒वड़ो से (द) राखीगढ़ी से
उत्तर (ब) मोहनजोवड़ो से
प्रश्न .5 हड़प्पा संस्कृति के पतन के कारणों की चर्चा कीजिए। 3T
उत्तर इस सभ्यता के पतनोन्मुख और अन्ततः विलुप्त हो जोने कारण हैं जो निम्नलिखित हैं-
1. वाह्य आक्रमण
2. भूतात्विक परिवर्तन
3. जलवायु परिवर्तन
4. विदेशी व्यापार में गतिरोध
5. साधनों का तीव्रता से उपभोग
6. बाढ़ एवं अन्य प्राकृतिक आपदा
7. प्रशासनिक शिथिलता
प्रश्न 6 निम्न में से कौन-सा एक भवन हड़प्पा संस्कृति से सम्बन्धित नहीं है ? 1
(अ) स्नानागार (ब) विशाल गोदाम
(स) अन्नागार (द) पिरामिड
उत्तर.
प्रश्न 7 हड़प्पा के लोगों की जीविका-निर्वाह प्रणाली पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। 2 times
उत्तर.हड़प्पा सभ्यता के लोगों की जीविका-निर्वाह प्रणाली मुख्य रूप से कृषि पर आधारित थी, जिसमें गेहूं, जौ, चावल, दालें, तिल और कपास जैसी फसलें उगाई जाती थीं. इसके साथ ही पशुपालन भी किया जाता था, जिसमें भेड़, बकरी, भैंस और सूअर जैसे पालतू जानवर पाले जाते थे. इसके अतिरिक्त, शिकार, मछली पालन और शिल्पकला जैसे व्यवसाय भी उनकी जीविका का हिस्सा थे, जिससे उनकी आर्थिक व्यवस्था में विविधता आती थी.
कृषि और फसलें
मुख्य फसलें: हड़प्पा के लोग गेहूं और जौ जैसी फसलें उगाते थे, जो उनके भोजन का मुख्य आधार थीं.
अन्य फसलें: वे चावल, दालें, मटर, अलसी, तिल, सरसों और कपास जैसी अन्य फसलें भी उगाते थे.
सिंचाई: सिंधु नदी की उपजाऊ घाटी और उनकी उन्नत सिंचाई प्रणाली ने कृषि के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
कृषि उपकरण: खेती के लिए हल जैसे उपकरणों का उपयोग किया जाता था.
पशुपालन
पालतू जानवर: हड़प्पावासी मवेशी, भेड़, बकरी और सूअर जैसे पालतू जानवरों को पालते थे.
चारागाह: शुष्क मौसम में इन जानवरों को चारा और पानी की तलाश में दूर-दूर तक ले जाया जाता था.
अन्य स्रोत
शिकार: लोग हिरण जैसे जंगली जानवरों का शिकार भी करते थे.
मछली पालन: मछली पालन भी जीविका का एक महत्वपूर्ण साधन था.
शिल्पकला और व्यापार: बुनाई, मिट्टी के बर्तनों का निर्माण, मुहरें बनाना तथा बाट और माप की इकाइयों का मानकीकरण भी उनकी आर्थिक गतिविधियों का हिस्सा था.
इन विभिन्न आर्थिक गतिविधियों ने हड़प्पा सभ्यता की जीविका प्रणाली को विविध और स्थिर बनाया.
प्रश्न .8 हड़प्पा सभ्यता में प्रचलित सिंचाई के कोई तीन साधन बताइए।
उत्तर.हड़प्पा सभ्यता में सिंचाई के मुख्य साधनों में नहरें, कुएँ, और जलाशय या तालाब शामिल थे, जिनका उपयोग नदियों और अन्य जल स्रोतों से पानी को खेतों तक पहुँचाने के लिए किया जाता था। बाढ़ जल खेती (बाढ़ के पानी का उपयोग) और वर्षा जल संचयन जैसी विधियों का भी उपयोग होता था।
सिंचाई के साधन:
नहरें: हड़प्पावासी नदियों और जलधाराओं से पानी को सीधे खेतों तक पहुँचाने के लिए नहरों का निर्माण करते थे। ये बड़े पैमाने पर बनाई जाती थीं और भूमि के बड़े क्षेत्रों को सिंचित करती थीं।
कुएँ: कुओं को खोदकर भूमिगत जल स्रोतों तक पहुँच बनाई जाती थी और इनका उपयोग भूमि के छोटे भूखंडों को पानी देने के लिए किया जाता था।
जलाशय/तालाब: पानी के भंडारण और उसे बाद में उपयोग के लिए सहेजने के लिए जलाशय और तालाब भी बनाए जाते थे।
अन्य विधियाँ:
बाढ़ जल खेती: बाढ़ के मैदानों में बाढ़ के पानी का उपयोग करके खेती की जाती थी, जिससे मिट्टी में उपजाऊ गाद पहुँचती थी।
वर्षा जल संचयन: वर्षा के पानी को इकट्ठा करके भविष्य में उपयोग के लिए संरक्षित किया जाता था।
बांध (संभावित): कुछ पुरातात्विक साक्ष्य बताते हैं कि पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने और खेतों में पानी पहुँचाने के लिए बांधों का भी निर्माण किया जाता था।
प्रश्न .9 पुरालेखशास्त्र किसे कहते हैं ?
उत्तर.पुरालेखशास्त्र, जिसे एपिग्राफी भी कहा जाता है, पत्थर, धातु, मिट्टी या अन्य कठोर सतहों पर उत्कीर्ण शिलालेखों या अभिलेखों का अध्ययन है. यह उन प्राचीन और ऐतिहासिक लिखित सामग्रियों का अध्ययन है, जिनमें अक्षरों, शब्दों और उनके अर्थों की पहचान, विश्लेषण और व्याख्या की जाती है, ताकि उस समय के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संदर्भ को समझा जा सके.
इसके प्रमुख पहलू:
पहचान और विश्लेषण: इसमें अभिलेखों में प्रयुक्त ग्राफीमों (अक्षरों) की पहचान की जाती है, और उनके अर्थों को स्पष्ट किया जाता है.
तिथिवार वर्गीकरण: पुरालेखशास्त्री अभिलेखों का काल-निर्धारण परीक्षण करके यह पता लगाते हैं कि वे किस समय लिखे गए थे.
सांस्कृतिक संदर्भ: यह अध्ययन प्राचीन सभ्यताओं के लिखित इतिहास को समझने में मदद करता है और उन समय की सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक स्थितियों पर प्रकाश डालता है.
पुरातत्व से जुड़ाव: पुरालेखशास्त्र पुरातत्व की एक शाखा है, जो ऐतिहासिक दस्तावेजों का पुनर्निर्माण करने और उन्हें सुरक्षित रखने का काम करती है.
संक्षेप में, पुरालेखशास्त्र वह विज्ञान है जो शिलालेखों के माध्यम से अतीत को समझने में मदद करता है, जिससे हमें अपने पूर्वजों के बारे में अधिक जानकारी मिलती है
प्रश्न . 10 क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल-निकास प्रणाली नगर-योजना की ओर संकेत करती है ?
उत्तर. हाँ, इस बात से पूरी तरह सहमत हुआ जा सकता है कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल-निकास प्रणाली उन्नत नगर-योजना की ओर संकेत करती है। यह एक ऐसी अत्यंत सुविचारित व्यवस्था थी जिसमें नालियाँ पत्थर की पट्टियों से ढकी होती थीं, गलियों के ग्रिड पैटर्न का अनुसरण करती थीं, और घरों की निकासी से जुड़कर शहर को स्वच्छतापूर्ण बनाए रखती थीं।
नगर-योजना की ओर संकेत करने वाले मुख्य कारण:
सुव्यवस्थित और कठोर व्यवस्था: हड़प्पावासियों ने एक सुदृढ़ और बड़े पैमाने पर जल निकासी तंत्र का निर्माण किया था, जो शहर की स्वच्छता के प्रति उनके सचेत प्रयासों को दर्शाता है।
योजनाबद्ध निर्माण: नालियों का निर्माण सड़कों और गलियों के नीचे किया गया था, और फिर उनके साथ घरों का निर्माण किया गया, जो एक व्यवस्थित योजना के साथ ही संभव हो सकता था।
ढकी हुई नालियाँ: नालियाँ पकी ईंटों या पत्थर से ढकी होती थीं, जिन्हें रखरखाव के लिए आसानी से हटाया जा सकता था। यह सफाई के महत्व को दर्शाता था।
ग्रिड पैटर्न: शहर की सड़कें और गलियाँ एक "ग्रिड" या चौकोर पैटर्न में बनाई जाती थीं, जो समकोण पर एक-दूसरे को काटती थीं।
महानगरों से लेकर छोटी बस्तियों तक: यह व्यवस्था केवल बड़े शहरों तक ही सीमित नहीं थी, बल्कि अनेक छोटी बस्तियों में भी इसके प्रमाण मिलते हैं।
मानव-केंद्रित डिजाइन: घरों से निकलने वाला गंदा पानी सीधे नालियों से जुड़ता था, और नगर के बाहर बड़े नालों में खाली होता था, जो एक कुशल जल प्रबंधन को दर्शाता है।
नियमित मैनहोल: रखरखाव और सफाई की सुविधा के लिए नालियों के मोड़ों पर नियमित अंतराल पर मैनहोल भी बनाए गए थे।
संक्षेप में, हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल-निकास प्रणाली न केवल उच्च स्तर की इंजीनियरिंग का प्रमाण है, बल्कि यह नगर नियोजन के एक महत्वपूर्ण पहलू - स्वच्छता और सार्वजनिक स्वास्थ्य - के प्रति उनकी गहरी समझ और प्रयास को भी उजागर करती है।
प्रश्न .11 हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए प्रयुक्त कच्चे माल पर प्रकाश डालिए।
प्रश्न .हड़प्पा सभ्यता में शिल्प उत्पादन के लिए आवश्यक कच्चे माल की सूची बनाइए तथा चर्चा कीजिए कि वे किस प्रकार प्राप्त किए जाते होंगे ?
उत्तर.कच्चे माल की सूची:
मिट्टी (ईंट बनाने के लिए)
धातु (तांबा, पीतल, सोना, चाँदी)
पत्थर (अलंकृत वस्तुएं बनाने के लिए)
रेशम
सीप और मोती (गहनों के लिए)
लकड़ी
प्राप्ति: ये कच्चे माल स्थानीय खदानों, नदियों, जंगलों और व्यापार मार्गों के माध्यम से प्राप्त होते थे। हड़प्पाई लोग व्यापार के ज़रिए दूर-दराज़ के क्षेत्रों से भी कच्चा माल लाते थे।
प्रश्न .12 चर्चा कीजिए कि पुरातत्त्वविद् किस प्रकार अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं ?
उत्तर.
खुदाई:
पुरातत्वविद नदियों, स्थलों और भूमिगत खनन करके प्राचीन अवशेषों को खोजते हैं।
अवशेषों का अध्ययन:
मिली वस्तुओं, भवनों के अवशेषों और अन्य सामग्री का विश्लेषण करते हैं।
संदर्भ विवरण:
अन्य ऐतिहासिक स्रोतों जैसे पुरानी लिपियों, ग्रंथों से तुलना कर इतिहास की व्याख्या करते हैं।
प्रयोगशाला जांच:
सामग्री की उम्र निर्धारित करने, यंत्रों और सामग्रियों की रचना समझने के लिए विज्ञान की मदद लेते हैं।
समाकलित व्याख्या:
उपरोक्त सभी जानकारियों को मिलाकर समाज, संस्कृति और इतिहास के बारे में एक सुसंगत चित्र प्रस्तुत करते हैं।
प्रश्न .13 मोहनजोदड़ो की सड़कों और गलियों के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर.सड़कों की विशेषताएं
ग्रिड प्रणाली: शहर की सारी सड़कों और गलियों को एक ग्रिड पैटर्न में बनाया गया था, जैसे कि कागज पर बनी सीधी लाइनें।
सड़कें और गलियां: मुख्य सड़कें चौड़ी थीं और छोटी गलियाँ उन्हें समकोण पर काटती थीं। मुख्य सड़कें काफी चौड़ी थीं, जो 9.75 मीटर से 10.5 मीटर तक चौड़ी हो सकती थीं. ये सड़कें उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम दिशा में जाती थीं.
घरों का मुख: घरों के मुख्य दरवाज़े सड़क की ओर नहीं, बल्कि अंदर की गलियों में खुलते थे।
धूल नियंत्रण: सड़कों को इस तरह बनाया गया था कि हवा से उड़ने वाली धूल आसानी से साफ हो जाती थी।
प्रश्न -14 हड़प्पाई लोगों द्वारा मनके बनाने के लिए प्रयोग की जाने वाली सामग्री तथा मनके बनाने की विधि को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए विभिन्न सामग्रियों का प्रयोग होता था:
पत्थर: कार्नेलियन, जैस्पर, क्वार्ट्ज, क्रिस्टल और स्टीटाइट (साबुन के पत्थर) जैसे पत्थरों का उपयोग होता था।
धातुएँ: तांबा, कांसा और सोना जैसी धातुओं का प्रयोग मनके बनाने में किया जाता था।
शंख और सीप: शंख और सीप के टुकड़ों का भी मनके बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
फ़यॉन्स और टेराकोटा: फ़यॉन्स (एक प्रकार का चीनी मिट्टी जैसा पदार्थ) और टेराकोटा (जली हुई मिट्टी) का भी मनके बनाने में उपयोग होता था।
मनके बनाने की विधि
मनके बनाने की प्रक्रिया सामग्री के आधार पर थोड़ी भिन्न होती थी, लेकिन इसमें कुछ सामान्य चरण शामिल थे:
सामग्री का चयन: पहले उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री जैसे पत्थर या धातु का चयन किया जाता था।
काटना और आकार देना: पत्थर या अन्य सामग्री को मनके के आकार में काटा जाता था। कठोर पत्थरों को तराश कर ज्यामितीय आकार दिए जाते थे।
धुलाई और पॉलिशिंग: आकार देने के बाद मनकों को घिसाई और पॉलिश करके चिकना व चमकदार बनाया जाता था।
छेद करना: मनके में धागा पिरोने के लिए एक छेद ड्रिल किया जाता था।
पकाना: कुछ मामलों में, विशेष रूप से अकीक (कार्नेलियन) से बने मनकों को एक जटिल प्रक्रिया में आग में पकाकर उनके लाल रंग को निखारा जाता था।
सजावट: कुछ मनकों को अंत में सजाया भी जाता था, जैसे कुछ मनकों पर सोने का टोप लगाया जाता था या उन पर रंगीन डिज़ाइन बनाए जाते थे।
प्रश्न- 15 हड़प्पा सभ्यता के लोग किस पशु की पूजा करते थे ?
उत्तर- हड़प्पा सभ्यता के लोग पशुपति (जानवरों के स्वामी) की पूजा करते थे, जिसकी मुहरों में योग मुद्रा में बैठे तीन मुख वाले पुरुष के रूप में दर्शाया गया है। इसके साथ ही, उन्हें कूबड़ वाले बैल (ज़ेबू) का भी सम्मान था, जो उनकी मुहरों पर सबसे अधिक दर्शाया गया जानवर था।
प्रश्न-16 सिन्धु घाटी के लोग 'सोना” कहाँ से प्राप्त करते थे ?
उत्तर-सिंधु घाटी के लोग मुख्य रूप से आज के दक्षिण भारत (विशेषकर कर्नाटक) और संभवतः हिमालय क्षेत्र से सोना प्राप्त करते थे. सोने का उपयोग मोतियों, बाजूबंदों और अन्य आभूषणों के लिए किया जाता था, हालाँकि चांदी का उपयोग सोने की तुलना में अधिक आम था.
प्रश्न- 17 जॉन मार्शल कौन था ?
उत्तर-जॉन मार्शल एक प्रसिद्ध पुरातत्वविद् थे जिन्होंने 1902 से 1928 तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक के रूप में कार्य किया और हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसे महत्वपूर्ण सिंधु घाटी सभ्यताओं के शहर की खुदाई की देखरेख की।
जॉन मार्शल (पुरातत्वविद्)
पहचान: एक अंग्रेजी पुरातत्वविद् जो भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक थे।
कार्यकाल: 1902 से 1928 तक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक रहे।
कार्य: उन्होंने सिंधु घाटी सभ्यता के दो प्रमुख शहरों, हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की खुदाई का नेतृत्व किया, जो इस प्राचीन सभ्यता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।
महत्वपूर्ण योगदान: मार्शल के कार्य ने भारत में पुरातत्व को आधुनिक बनाने में मदद की और सिंधु घाटी सभ्यता जैसे भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण युगों की पहचान स्थापित की।
संक्षेप में, जॉन मार्शल भारतीय पुरातत्व के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत के प्राचीन इतिहास, विशेषकर सिंधु घाटी सभ्यता के रहस्य को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
प्रश्न- 18 “मोहनजोदड़ो” का क्या अर्थ है ?
उत्तर-मोहनजोदड़ो का अर्थ सिंधी भाषा में "मृतकों का टीला" है. यह सिंधु घाटी सभ्यता का एक प्रमुख और नियोजित शहर था, जिसके अवशेषों को इस टीले में पाया गया है.
प्रश्न-19 भारतीय समाज को सिन्धु सभ्यता की क्या देन है ?
उत्तर-
सिन्धु सभ्यता ने भारतीय समाज को सुनियोजित नगरों का विकास, जल निकासी व्यवस्था, मानकीकृत तोल-माप प्रणाली, कृषि और धातु कला का ज्ञान (विशेषकर कांसे का), लंबी दूरी के व्यापार की शुरुआत, मुहरों का प्रयोग तथा आभूषण और श्रृंगार प्रियता जैसी कई महत्वपूर्ण देनें दी हैं. ये सांस्कृतिक और तकनीकी योगदान आधुनिक भारतीय सभ्यता के अभिन्न अंग बन गए हैं.
कुछ प्रमुख देनें:
नगरीय नियोजन: सिन्धु सभ्यता ने आधुनिक शहरी नियोजन की नींव रखी, जिसमें शहरों का ग्रिड प्रणाली के अनुसार सुनियोजित निर्माण, ईंटों से बने भवन और कुशल जल निकासी व्यवस्था शामिल थी.
जल निकासी व्यवस्था: घरों में शौचालय और स्वचालित फ्लश सिस्टम जैसी उन्नत जल निकासी व्यवस्था इस सभ्यता की प्रमुख विशेषता थी, जो आज भी आधुनिक शहरों में देखी जाती है.
मानकीकृत तोल-माप: सिन्धु सभ्यता में 16 के अनुपात में बाट और माप की एक सुव्यवस्थित प्रणाली थी, जो व्यापार और वाणिज्य के लिए आवश्यक थी.
धातु और कला का विकास: इस सभ्यता में कांस्य (ताँबा व टिन का मिश्रण) का व्यापक उपयोग हुआ और उन्होंने इसकी कलात्मक वस्तुओं का निर्माण किया.
व्यापार: सिन्धु सभ्यता ने मेसोपोटामिया जैसी सभ्यताओं के साथ लंबी दूरी के व्यापार को बढ़ावा दिया, जिससे वस्तुओं के आदान-प्रदान और व्यापारिक मुहरों का प्रचलन शुरू हुआ.
आभूषण और श्रृंगार प्रियता: निवासियों की आभूषणों और श्रृंगार के प्रति जागरूकता भारतीय सामाजिक जीवन का आज भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.
धर्म और संस्कृति: मुहरों पर पाए गए धार्मिक चिन्हों (जैसे पीपल, बैल, मातृदेवी) ने धार्मिक चेतना के विकास में योगदान दिया.
प्रश्न-20 सिन्धु घाटी की सभ्यता की लिपि की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-सिंधु घाटी लिपि की विशेषताएँ:
भाव-चित्रात्मक प्रकृति: इस लिपि में चित्रों का उपयोग होता था, जो जानवरों, मछलियों और मानव आकृतियों सहित विभिन्न अवधारणाओं या शब्दों को दर्शाते थे। इस प्रकार, यह पूरी तरह से ध्वन्यात्मक नहीं थी।
बुस्ट्रोफेडन लेखन शैली: सिंधु लिपि में लेखन का एक विशिष्ट तरीका उपयोग किया जाता था, जिसे बुस्ट्रोफेडन शैली कहा जाता है। इसका मतलब है कि पहली पंक्ति को दाएँ से बाएँ लिखा जाता था और अगली पंक्ति को बाएँ से दाएँ लिखा जाता था।
प्रश्न-21 हड़प्पा समाज में शासकों द्वारा किए जाने वाले संभावित कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
प्रशासन और कानून व्यवस्था बनाए रखना
नगर नियोजन और विकसित संरचनाओं का निर्माण
कृषि और जल प्रबंधन की देखभाल
व्यापार और आर्थिक गतिविधियों का नियंत्रण
सामाजिक एकता और सांस्कृतिक क्रियाकलापों का प्रोत्साहन
रक्षा और सुरक्षा व्यवस्था का प्रबंध
हड़प्पों सभ्यता के नगर तथा बस्तियाँ नियोजित थीं। वहाँ कई प्रकार के शिल्प उत्पादन होते थे जिनके लिए “कच्चा माल दूर-दूर से भी आता था। कृषि बस्तियाँ भी विकसित हो रही थीं। ये सभी कार्य किसी शासक-वर्ग द्वारा ही किए जा सकते थे। आम लोगों का आपस में इतना तालमेल नहीं हो सकता और न ही वे सामूहिक रूप से ऐसे निर्णयले सकते थे। भले ही कई विद्वानों का यह मत है कि हड़प्पा सभ्यता में शासक-वर्ग का अस्तित्व नहीं था, परंतु यह बात तर्कसंगत नहीं जान पड़ती। संक्षेप में, हड़प्पाई समाज में शासकों द्वारा निम्नलिखित कार्य किए जाते होंगे-
नगर-योजना बनाना-
हड़प्पा संस्कृति की नगर-योजना उच्च कोटि की थी।
नगर एक योजना के बसाए जाते थे। नगरों की गलियाँ और सड़कें काफ़ी चौड़ी होती थीं।
मकानों में खिड़कियों तथा दरवाजो व्यवस्था थी। हर घर में एक आँगन , स्नानगृह: रसोई तथा छत पर पहुँचने के लिए सीढ़ियाँ होती के भी थे।
मोहनजोदड़ो में एक मिला विशाल स्नानागार मिला है जिसे विशेष अवसरों पर सामूहिक रूप से प्रयोग में लाया जाता था। यह 14.88 मीटर लंबा, 7.0 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा था।
विभिन्न शिल्प-
हड़प्पा संस्कृति में कई प्रकार के शिल्प प्रचलित थे, जो संभवत: राज्य द्वारा व्यवस्थित होते थे।
ताँबे में टिन मिलाकर धातु शिल्पियों दूवारा काँसा बनाया जाता था।
शिल्पी काँसे से प्रतिमाओं और बर्तनों के अतिरिक्त कई प्रकार केऔजार तथा हथियार थे; जैसे- आए, कुल्हाड़ी, छुरा तथा ब्छा। खुदाई में जो वस्तुएँ मिली हैं, उनसे पता चलता है कि हड़प्पा के नगरों में कई अन्य महत्त्वपूर्ण शिल्प भी थे। लोग ऊन अथवा सूत कातने के लिए तकलियों का प्रयोग करते थे।
वहाँ पर मिले ईंटों के विशाल भवन इस बात का प्रमाण हैं कि स्थापत्य (राजगीरी) / वहाँ के लोगों का एक महत्त्वपूर्ण शिल्प था। हड़प्पा के लोग नावों का निर्माण भी करते थे। वे लोग मद्रा-निर्माण (मिट्टी कौ मोहरें बनाना) और मूर्ति-निर्माण में काफ़ी कुशल थे।
कच्चे माल के समीप बस्तियाँ-
शिल्पों के लिए कुछ कच्चा माल स्थानीय रूप से उपलब्ध था। इसमें शंख, सेलखडी, लाज़वर्द मणि थे। अत: राज्य की ओर से स्थानीय लोग कच्चे माल के समीप बस्तियाँ बसाते थे।
.देश के विभिन्न भागों में अभियान भेजना-
शासक देश के विभिन्न भागों से कच्चा माल प्राप्त करने के लिए अभियान भेजते थे। उदाहरण के लिए राजस्थान के खेतड़ी अंचल में ताँबे के लिए तथा दक्षिण भारत में सोना प्राप्ति के लिए अभियान भेजे गए।
लंबी दूरी के संपर्क-
शासक लोग लंबी दूरी के संपर्क भी स्थापित करते थे। इन संपकों द्वारा मुख्य रूप से ताँबा मँगवाया जाता था। इस बात के कई प्रमाण मिले हैं कि अरब प्रायद्वीप के दक्षिण पश्चिमी छोर पर स्थित ओमान से हड़प्पाई बस्तियों में ताँबा आता था |
प्रश्न-22 पुरातत्त्वविद् हड़प्पाई समाज में सामाजिक, आर्थिक भिन्नताओं का पता किस प्रकार लगाते हैं ?
उत्तर-सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं का पता लगाने के तरीके:
मकानों का अध्ययन:
पुरातत्वविद घरों के आकार और निर्माण गुणवत्ता में अंतर को देखते हैं।
बड़े, मजबूत निर्माण वाले घर और बेहतर बनावट वाले शहरी क्षेत्रों में पाए जाने वाले मकान उच्च वर्ग का संकेत देते हैं, जबकि छोटे मकान निम्न वर्ग के लोगों के रहे होंगे।
शव-संग्रहों (कब्रों) का विश्लेषण:
सामग्रियों की गुणवत्ता और मात्रा: कब्रों में मिली वस्तुओं (जैसे मिट्टी के बर्तन, आभूषण) की गुणवत्ता और संख्या में भिन्नता आर्थिक स्थिति के अंतर को दर्शाती है।
भेंट के सामान: अधिक समृद्ध और जटिल सामान वाली कब्रें उच्च सामाजिक-आर्थिक वर्ग के लोगों से जुड़ी होती हैं।
कलाकृतियों का वर्गीकरण:
पुरातत्वविद कलाकृतियों को दो श्रेणियों में बांटते हैं: उपयोगी और विलासिता।
उपयोगी वस्तुएँ: ये रोजमर्रा के उपयोग की साधारण वस्तुएँ होती हैं जो मिट्टी या पत्थर जैसे आसानी से उपलब्ध स्थानीय सामग्रियों से बनी होती हैं, जैसे चक्कियाँ, सूइयाँ और सामान्य मिट्टी के बर्तन।
विलासिता की वस्तुएँ: ये दुर्लभ, महंगी, जटिल तकनीकों से बनी होती थीं, और अक्सर गैर-स्थानीय सामग्रियों से बनती थीं। ऐसी वस्तुएँ मिलने से समाज में धन और उच्च सामाजिक स्तर वाले लोगों की उपस्थिति का पता चलता है।
प्रश्न 23 हड़प्पा संस्कृति के लोग किस धातु से परिचित नहीं थे ?
उत्तर-हड़प्पा संस्कृति के लोग लोहे धातु से परिचित नहीं थे. यह सभ्यता एक कांस्ययुगीन सभ्यता थी, इसलिए उन्हें तांबा और कांसा जैसी धातुएँ ज्ञात थीं, लेकिन लोहे का ज्ञान उन्हें नहीं था.
प्रश्न 24 हड़प्पाकालीन कृषि प्रौद्योगिकी का वर्णन करें।
उत्तर-कृषि तकनीक और उपकरण:
हल: हड़प्पावासियों ने संभवतः हल की तकनीक सुमेरियन सभ्यता से सीखी थी। वे लकड़ी के हल का उपयोग करते थे, जो समय के साथ लकड़ी के सड़ने के कारण बच नहीं पाते थे।मोहनजोदड़ो से प्राप्त टेराकोटा हल मॉडल उनके डिजाइन को दर्शाता है, हालांकि उसमें हैंडल नहीं है।
पहिएदार गाड़ियां: ठोस पहियों वाली बैलगाड़ियां खेत की खाद जैसे सामान को ले जाने के लिए इस्तेमाल की जाती थीं। यह पशु बल और पहिये की तकनीक को उजागर करता है।हड़प्पा और चन्हूदड़ो से बैलगाड़ियों के कई कांस्य मॉडल पाए गए हैं। साथ ही, हड़प्पा में गाड़ियों के पहियों के निशान (Cart-ruts) भी पाए गए हैं, जो उनके उपयोग को प्रमाणित करते हैं।
फसल पैटर्न: कालीबंगन में उत्खनन से ग्रिड पैटर्न वाले एक जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है, जहां मिश्रित फसल (जैसे- सरसों और चना) उगाई थी। यह संभवतः विश्व में हल से जुताई वाले खेत का सबसे पहला सबूत है।
फसल सुरक्षा: हिरण, जंगली सूअर, तोते जैसे जंगली जानवर फसलों को नुकसान पहुंचाते थे। हड़प्पा स्थलों पर पाए गए टेराकोटा गोफन/ गुलेल की गेंदों से पता चलता है कि किसान गुलेल का इस्तेमाल जंगली जानवरों, पक्षियों आदि को डराने के लिए करते थे। यह तरीका आज भी उत्तरी भारत के ग्रामीण इलाकों में देखा जाता है।
भूमि और सिंचाई पद्धतियां:
खेत मुख्य रूप से नदी के किनारे स्थित थे, जहां सिंचाई के लिए मौसमी बाढ़ का लाभ उठाया जाता था।
रबी की फसलें बाढ़ के बाद बोई जाती थीं, जबकि खरीफ की फसलें बाढ़ की शुरुआत में बोई जाती थीं और इसके समाप्त होने पर काटी जाती थीं।
उन्नत सिंचाई (गबरबंद, नहरें व कुएं) से साल भर विशेषकर शुष्क मौसम के दौरान खेत की सिंचाई करने में सहायता मिलती थी।
निष्कर्ष: सिंधु घाटी सभ्यता अपनी मजबूत कृषि व्यवस्था/ पद्धति के कारण सदियों तक फलती-फूलती रही। उसकी उन्नत कृषि पद्धति ने विकसित शहरों, सुंदर कला और व्यापक-व्यापार नेटवर्क का समर्थन किया। यह कृषिगत सफलता ही थी, जिसने उन्हें मानव इतिहास पर एक स्थायी प्रभाव छोड़ने में सक्षम बनाया।
प्रश्न-25 हड़प्पा काल के यातायात के दो साधन बताएँ।
उत्तर-हड़प्पा काल में यातायात के दो प्रमुख साधन थे: बैलगाड़ियाँ और नावें। व्यापारी सामान ढोने के लिए बैलगाड़ियों का उपयोग करते थे, जिनके टेराकोटा मॉडल उत्खनन में पाए गए हैं, और नदियों तथा अन्य जलमार्गों पर परिवहन के लिए लंबी और संकरी नौकाओं का इस्तेमाल किया जाता था।
प्रश्न-26 मोहनजोदड़ो से प्राप्त विशाल स्नानागार अथवा जलाशय की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर-मोहनजोदड़ो का विशाल स्नानागार सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे महत्वपूर्ण और उत्कृष्ट वास्तुशिल्प संरचनाओं में से एक है। इसकी मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
1. विशाल आकार: यह एक बड़ा, आयताकार जलाशय है। इसका माप लगभग 11.88 मीटर लंबा, 7.01 मीटर चौड़ा और 2.43 मीटर गहरा है।
2. जलरोधी निर्माण:
इसे पक्की और अच्छी तरह से तराशी हुई ईंटों से बनाया गया है।
पानी के रिसाव को रोकने के लिए, ईंटों को जोड़ने के लिए जिप्सम के गारे का इस्तेमाल किया गया था।
जलाशय के तल और किनारों पर प्राकृतिक तार (बिटुमेन) की एक मोटी परत चढ़ाई गई थी, जिससे यह पूरी तरह से जलरोधी हो गया था।
3. सीढ़ियाँ और गलियारे:
इसमें उत्तर और दक्षिण दिशा से नीचे उतरने के लिए चौड़ी सीढ़ियाँ बनी हैं।
सीढ़ियों के किनारे छोटे-छोटे गड्ढे हैं, जिनमें शायद लकड़ी के तख्ते या पायदान लगे होंगे।
इन सीढ़ियों के नीचे एक छोटा सा चबूतरा है, जिससे लोग बिना पानी में उतरे जलाशय के चारों ओर चल सकते थे।
4. जल प्रबंधन प्रणाली:
स्नानागार में पानी भरने के लिए बगल के एक कमरे में स्थित एक विशाल कुएँ का उपयोग किया जाता था।
इस्तेमाल किए गए पानी को बाहर निकालने के लिए एक नाली भी बनाई गई थी, जो शहर की मुख्य जल निकासी व्यवस्था से जुड़ी थी।
5. कमरे और बरामदे:
जलाशय के चारों ओर बरामदे और कई कमरे बने हुए हैं।
उत्तरी दिशा में एक संकरी गली के पार एक छोटी इमारत थी जिसमें आठ स्नानघर थे, जो गलियारे के दोनों तरफ चार-चार की संख्या में स्थित थे।
6. धार्मिक या अनुष्ठानिक उपयोग:
इसकी विशाल संरचना और पवित्रता को देखते हुए, ऐसा माना जाता है कि इसका उपयोग धार्मिक या अनुष्ठानिक स्नान के लिए किया जाता था, जहाँ विशिष्ट नागरिक विशेष अवसरों पर स्नान करते थे।
7. स्थापत्य कला का उत्कृष्ट उदाहरण:
यह स्नानागार सिंधु घाटी सभ्यता की उन्नत इंजीनियरिंग और स्थापत्य कौशल का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।
इसकी योजनाबद्धता, जलरोधी तकनीक और जल निकासी व्यवस्था उस समय के लोगों की तकनीकी समझ और स्वच्छता के प्रति जागरूकता को दर्शाती है।
प्रश्न-27 हड़प्पा संस्कृति का अंत क्यों हुआ था ?
उत्तर-हड़प्पा सभ्यता के पतन का कारण कोई एक नहीं बल्कि कई प्राकृतिक, जलवायु संबंधी, आर्थिक और सामाजिक कारकों का संयोजन था। प्रमुख कारणों में जलवायु परिवर्तन, बाढ़ और सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाएँ, नदियों के मार्ग बदलना, व्यापार में गिरावट, और सामाजिक-आर्थिक असंतुलन शामिल हैं. इन सभी कारकों ने मिलकर इस सभ्यता के पतन में योगदान दिया.
प्रश्न-28 हड़प्पा काल में नृत्य करती हुई लड़की की कांसे की मूर्ति कहाँ से प्राप्त हुई ?
उत्तर-हड़प्पा काल में नृत्य करती हुई लड़की की कांसे की मूर्ति मोहनजोदड़ो से प्राप्त हुई है। यह मूर्ति सिंधु घाटी सभ्यता की सबसे प्रसिद्ध कलाकृतियों में से एक है। बाएं हाथ में 24 से 25 चूड़ियाँ और दाहिने हाथ में 4 चूड़ियाँ पहनती है, और उसके बाएँ हाथ में कोई वस्तु पकड़ी हुई है, जो उसकी जाँघ पर टिकी हुई है; दोनों भुजाएँ असामान्य रूप से लंबी हैं। उसके हार में तीन बड़े पेंडेंट हैं। उसने अपने लंबे बालों को एक बड़े बन में स्टाइल किया है जो उसके कंधे पर आराम कर रहा है। यह नग्न है।
इस मूर्ति के बारे में कुछ खास बातें:
खोज: इसकी खोज 1926 में पुरातत्वविद् अर्नेस्ट मैके ने मोहनजोदड़ो में की थी।
तकनीक: इसे "लॉस्ट वैक्स" (Lost Wax) तकनीक का उपयोग करके बनाया गया था, जो उस समय की एक उन्नत ढलाई विधि थी।
वर्तमान स्थान: यह मूर्ति अब नई दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी गई है।
प्रश्न-29 मोहनजोदड़ो के घरों की कोई को विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर-मोहनजोदड़ो के घरों की दो प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
आँगन और कमरे: अधिकतर घरों में एक आँगन होता था, जिसके चारों तरफ कमरे बने होते थे। आँगन संभवतः खाना पकाने और बुनाई जैसी गतिविधियों का केंद्र था।
निजी स्नानघर और उन्नत जल निकासी: लगभग हर घर का अपना ईंटों से बना एक स्नानघर होता था, जिसकी नालियाँ दीवार के माध्यम से सड़क की ढकी हुई नालियों से जुड़ी होती थीं। यह स्वच्छता के प्रति उनकी जागरूकता को दर्शाता है।
प्रश्न-30हड़प्पा सभ्यता के लोग तॉबा कहाँ से प्राप्त करते थे ?
उत्तर-हड़प्पा सभ्यता के लोग मुख्य रूप से राजस्थान के खेतड़ी क्षेत्र से तांबा प्राप्त करते थे, जहाँ गणेश्वर जैसे स्थानों पर खदानें थीं. इसके अतिरिक्त, ओमान और अफगानिस्तान जैसे बाहरी क्षेत्रों से भी तांबे का आयात किया जाता था, जो उनके विस्तृत व्यापार नेटवर्क को दर्शाता है.
प्रश्न-31 बनावली किस राज्य में स्थित है ?
उत्तर-बनावली भारतीय राज्य हरियाणा के फतेहाबाद जिले में स्थित एक पुरातात्विक स्थल है. यह सिंधु घाटी सभ्यता से संबंधित है और रंगोई नदी के तट पर स्थित था, जो अब सरस्वती नदी की शुष्क तल के रूप में जानी जाती है.
प्रश्न-32 हड़प्पाकालीन जुते हुए खेत का निशान कहाँ मिला है ?
उत्तर-हड़प्पाकालीन जुते हुए खेत का सबसे महत्वपूर्ण निशान कालीबंगा से मिला है, जो वर्तमान राजस्थान में स्थित है।
प्रश्न-33 हड़प्पा सभ्यता को सिन्धु घाटी की सभ्यता का नाम क्यों दिया गया है ?
उत्तर-सिंधु घाटी नाम क्यों पड़ा?
भौगोलिक कारण: यह सभ्यता सिंधु नदी और उसकी घाटियों में फैली हुई थी।
नदी का महत्व: सिंधु नदी ने इस क्षेत्र के लोगों को खेती, व्यापार और जीवन की अन्य गतिविधियों के लिए पानी और उपजाऊ जमीन प्रदान की।
खोज का क्षेत्र: खुदाई में मिले अवशेष इस सभ्यता के सिंधु नदी और उसकी घाटियों के क्षेत्र में होने की पुष्टि करते हैं।
हड़प्पा नाम क्यों पड़ा?
पहला खोजा गया स्थल: इस सभ्यता की खोज के दौरान सबसे पहले वर्तमान पाकिस्तान में स्थित "हड़प्पा" नामक स्थान पर खुदाई हुई थी।
पहचान का आधार: किसी भी संस्कृति या सभ्यता की पहचान अक्सर उसके पहले खोजे गए प्रमुख स्थल के नाम पर रखी जाती है। हड़प्पा भी एक प्रमुख पुरातात्विक स्थल था।
प्रश्न-34 हड़प्पा लोगों द्वारा शव का अन्तिम संस्कार कैसे किया जाता था ?
उत्तर-यहाँ मुख्य तरीके दिए गए हैं:
पूर्ण दफ़नाना (Complete Burial):
शवों को पूरी तरह से दफनाया जाता था, अक्सर उत्तर-दक्षिण दिशा में।
शव को आमतौर पर पीठ के बल लिटाया जाता था और घुटनों को मोड़ा जाता था।
शव के साथ मिट्टी के बर्तन, आभूषण, कंघी और अन्य दैनिक उपयोग की वस्तुएं भी दफनाई जाती थीं।
आंशिक दफ़नाना (Partial Burial):
इस प्रथा में शव को किसी खुले स्थान पर छोड़ दिया जाता था, जहाँ जंगली जानवर और पक्षी शव को खा लेते थे।
बाद में, बची हुई हड्डियों को एकत्र करके उन्हें दफ़नाया जाता था।
दाह संस्कार के बाद दफ़नाना (Burial After Cremation):
कुछ मामलों में, शवों को पहले जलाया जाता था।
फिर जली हुई राख या हड्डियों को किसी बर्तन में इकट्ठा करके दफना दिया जाता था।
यह प्रथाएं विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक विश्वासों को दर्शाती हैं और बताती हैं कि हड़प्पा सभ्यता में मृत्यु के बाद भी आत्मा और मृत्यु के बाद के जीवन में विश्वास था।
प्रश्न-35 अभिलेखीय साक्ष्यों की सीमाएँ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-तकनीकी और भौतिक सीमाएँ
धुंधले या क्षतिग्रस्त अक्षर: समय, क्षरण और मौसम के प्रभाव से अभिलेखों के अक्षर धुंधले पड़ सकते हैं या क्षतिग्रस्त हो सकते हैं, जिससे उन्हें पढ़ना मुश्किल या असंभव हो जाता है.
अपूर्णता: कई अभिलेख क्षतिग्रस्त या अपूर्ण हो सकते हैं, जिससे उनमें निहित जानकारी का सही अर्थ निकालना चुनौतीपूर्ण हो जाता है.
व्याख्या और भाषा संबंधी सीमाएँ
भाषा और लिपि की कठिनाई: अभिलेखों में प्रयुक्त प्राचीन भाषाएँ और लिपियाँ आधुनिक विद्वानों के लिए अज्ञात या समझने में कठिन हो सकती हैं.
शब्दों का विशिष्ट अर्थ: कुछ शब्दों का अर्थ किसी विशेष स्थान या समय के लिए विशिष्ट हो सकता है, जिससे उनकी व्याख्या पर विद्वानों के बीच मतभेद हो सकता है.
जानकारी की सीमाएँ
राजनीतिक या धार्मिक पक्षपात: अभिलेख अक्सर शासकों, संरक्षकों या धार्मिक संस्थाओं की प्राथमिकताओं को दर्शाते हैं, इसलिए उनमें पक्षपात हो सकता है और वह तटस्थ नहीं होते.
अधूरी जानकारी: अभिलेख आम तौर पर कुछ विशेष उद्देश्यों जैसे शाही आदेश, भूमि अनुदान या धार्मिक उपदेशों के लिए बनाए जाते थे. वे समाज के सभी पहलुओं, विशेषकर आम लोगों के दैनिक जीवन की घटनाओं और अनुभवों का विवरण नहीं देते.
अपूर्ण प्रतिनिधित्व: अभिलेख समाज की केवल एक छोटी सी तस्वीर पेश करते हैं, जो बनाने वाले के दृष्टिकोण से होती है, न कि एक संपूर्ण चित्र.अभिलेखों की उपलब्धता संबंधी सीमाएँ
अधूरा संग्रह: हज़ारों अभिलेखों में से अधिकांश को अभी तक पढ़ा नहीं गया है या उनका प्रकाशन नहीं किया गया है.
अज्ञात अभिलेख: कई अभिलेख समय के साथ खो गए हैं या अभी भी अज्ञात स्थानों पर दबे हुए हैं, इसलिए हमारे पास आज जो भी जानकारी है, वह अतीत की पूरी तस्वीर का केवल एक छोटा सा अंश है.
प्रश्न-36 हड़प्पा सभ्यता के लोग किस पशु की पूजा करते थे ?
उत्तर-हड़प्पा सभ्यता के लोग कई जानवरों और वस्तुओं की पूजा करते थे, जिनमें कूबड़ वाला बैल और यूनिकॉर्न (एक श्रृंगी) विशेष रूप से पूजे जाते थे। इसके अलावा, पशुपति (आद्य शिव), मातृदेवी, पीपल जैसे पेड़ों और अग्नि की भी पूजा की जाती थी।
प्रश्न-37 हड़प्पा सभ्यता के शिल्प उत्पादों पर एक लेख लिखिए।
उत्तर-शिल्प उत्पादों का विवरण
मिट्टी के बर्तन (मृद्भाण्ड): हड़प्पा सभ्यता के लोग मिट्टी के बर्तन बनाने में माहिर थे, जिन्हें चाक पर बनाया जाता था। इन बर्तनों को लाल या भूरे रंग से रंगा जाता था और उन पर काले रंग से चित्रकारी भी की जाती थी।
पत्थर की नक्काशी: पत्थर की नक्काशी में हड़प्पावासी कुशल थे, खासकर मुहरों के निर्माण में। इन मुहरों पर विभिन्न लिपि और डिज़ाइन के चित्र उकेरे जाते थे।
टेराकोटा मूर्तियाँ: मिट्टी से बनी टेराकोटा की मूर्तियाँ भी इस सभ्यता का एक प्रमुख उत्पाद थीं, जिनमें पशुओं और मानव आकृतियाँ शामिल थीं।
धातु के उत्पाद: ताँबे और काँसे जैसी धातुओं को गलाकर उनमें से औजार, हथियार और मूर्तियाँ बनाना उनका एक प्रमुख शिल्प था।
मनके और आभूषण: हड़प्पा सभ्यता के लोग रत्नजड़ित मनके बनाने में अत्यंत कुशल थे। लैपिस लाजुली जैसे कीमती नीले पत्थरों का प्रयोग करके बनाए गए मनके और अन्य आभूषण आज भी उनकी कला और तकनीकी क्षमता को दर्शाते हैं।
कपड़ा उद्योग: सूत और ऊन की कताई-बुनाई तथा रंगाई भी एक प्रमुख व्यवसाय था, जैसा कि खुदाई में मिले तकली और सुई जैसे उपकरणों से पता चलता है।
लकड़ी का काम: लकड़ी के सामान बनाने में भी लोग कुशल थे, जिसमें कृषि उपकरण और बैलगाड़ी जैसे उत्पाद शामिल थे।
शिल्प उत्पादन के प्रमुख केंद्र
चन्हूदड़ो: यह स्थल शिल्प उत्पादन के लिए समर्पित था, जिसमें मनके बनाना, शंख काटना, धातुकर्म और मुहरें बनाना प्रमुख था।
मोहनजोदड़ो: इस स्थल पर भी विभिन्न प्रकार की कलात्मक और कार्यात्मक वस्तुओं का निर्माण होता था।
लोथल: यह गुजरात के कार्नेलियन जैसे रत्नों के स्रोतों के पास स्थित था, जिससे यहाँ आभूषण और मनके बनाने का काम होता था।
प्रश्न-38 हरियाणा में सिन्धु घाटी की सभ्यता का प्रमुख केन्द्र।
उत्तर-हरियाणा में सिन्धु घाटी सभ्यता का सबसे प्रमुख केंद्र राखीगढ़ी है। यह हिसार जिले में स्थित एक पुरातात्विक स्थल है और उपमहाद्वीप के सबसे बड़े और पुराने शहरी केंद्रों में से एक है, जो सिन्धु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) से संबंधित है।
प्रश्न-39 हड़प्पा सभ्यता के लोग किस पशु से अनभिन्ञ माने जाते हैं ?
उत्तर-हड़प्पा सभ्यता के लोग घोड़े से अनभिज्ञ माने जाते हैं। हालाँकि कुछ पुरातात्विक स्थलों पर घोड़े की हड्डियों के अवशेष मिले हैं, फिर भी आम तौर पर यही माना जाता है कि हड़प्पावासी व्यापक रूप से इस पशु से परिचित नहीं थे और यह उनकी संस्कृति का हिस्सा नहीं था।
प्रश्न-40 हड़प्पावासियों के सुदूर क्षेत्रों से संपक थे। उदाहरण दीजिए।
उत्तर-हड़प्पावासी सुदूर क्षेत्रों से तांबा, लैपिस लाज्युली और अन्यमती मूल्यवान वस्तुएँ प्राप्त करते थे, जैसा कि मेसोपोटामिया, अफगानिस्तान और ओमान जैसे स्थानों से हड़प्पा मोहरों और कलाकृतियों की खोजों से पता चलता है. वे व्यापारिक मार्गों के लिए जलमार्गों (जैसे सिंध नदी) और थल मार्गों का उपयोग करते थे, तथा कच्चे माल प्राप्त करने के लिए खेतड़ी जैसे क्षेत्रों में अभियान भेजते थे.
प्रश्न-41 हड़प्पा सभ्यता की लिपि में चिन्हों की संख्या .............. से .............. के बीच है।
उत्तर-हड़प्पा सभ्यता की लिपि में चिन्हों की संख्या 375 से 400 के बीच है, जो इसे एक लोगो-सिलेबिक (शब्दों या अक्षरों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतीक) या आइडियोग्राफिक (विचारों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतीक) लिपि बनाती है, न कि विशुद्ध रूप से वर्णमाला वाली।
प्रश्न-42 आधुनिक शहरों की कौन-सी विशेषताएँ हड़प्पाकालीन नगरों में पाई गई हैं ?
उत्तर-हड़प्पाकालीन नगरों में आधुनिक शहरों की कई विशेषताएं पाई गई हैं, जैसे सुनियोजित ग्रिड-पद्धति पर आधारित सड़कों का निर्माण, विस्तृत और प्रभावी जल निकासी व्यवस्था, मानकीकृत ईंटों का प्रयोग, और सार्वजनिक भवनों का निर्माण। ये विशेषताएं आधुनिक शहरी नियोजन और अवसंरचना में भी दिखती हैं, जिससे हड़प्पा सभ्यता का शहरीकरण प्रभावशाली बन जाता है।
0 Comments