क्या आपने कभी सोचा है कि कैसे एक मामूली सा दिखने वाला कमजोर सेहत का नौजवान दुनिया की सबसे शक्तिशाली सल्तनत का शहंशाह बन सकता है? एक ऐसा नौजवान जिसे विरासत में दौलत नहीं बल्कि दुश्मनों से व्याप्त एक खूनी दुनिया मिली थी। आज हम बात करने वाले हैं एक ऐसी ही शख्सियत की जिसने रोम का नक्शा ही नहीं बल्कि इतिहास का रुख भी हमेशा के लिए बदल दिया। हम बात कर रहे हैं ऑगस्टस सीजर की रोम के पहले सम्राट की। यह कहानी सिर्फ एक राजा की कहानी नहीं है। यह कहानी है राजनीति, धोखा, हिम्मत और एक ऐसे दृष्टिकोण की जिसने एक बिखरते हुए गणराज्य को एक शानदार साम्राज्य में परिवर्तित कर दिया। 2000 साल पीछे और जानते हैं ऑक्टेवियन से ऑगस्टस बनने की इस अविश्वसनीय कहानी को।
अध्याय नंबर
एक एक अनजान युवक से रोम के भविष्य तक का सफर।
कैसे एक नाजुक सा नौजवान दुनिया की सबसे विशाल सल्तनत का वारिस बना। रोम एक ऐसा नाम जो आज भी दुनिया के कोने-कोने में गूंजता है। एक ऐसी सभ्यता जिसने कानून, सियासत और जंग के मायनों को हमेशा के लिए बदल दिया। लेकिन जिस दौर की हम बात कर रहे हैं, वह रोम की शान का नहीं बल्कि उसके सबसे मुश्किल दौरों में से एक था। रोम एक गणराज्य था। यानी लोगों द्वारा चुने हुए प्रतिनिधि ही शासन चलाते थे। लेकिन यह सिर्फ नाम का गणराज्य रह गया था। असल में सत्ता कुछ ताकतवर जनरलों और अमीर परिवारों के हाथ की कठपुतली बन चुकी थी। हर कोई ज्यादा से ज्यादा ताकत हासिल करना चाहता था और इसके लिए गृह युद्ध यानी आपस में संघर्ष आम बात हो गई थी। इसी उथल-पुथल भरे माहौल में रोम से कुछ दूर एक छोटे से शहर में एक बालक का जन्म हुआ। उसका नाम था गियस ऑक्टवियन। एक साधारण से परिवार में जन्मा यह नौजवान दिखने में भी कोई खास नहीं था। उसकी सेहत अक्सर खराब रहती थी और वह दूसरे युवकों की तरह बलवान भी नहीं था। किसी ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि यह दुबला पतला और बीमार सा दिखने वाला नौजवान एक दिन रोम की किस्मत लिखेगा। तो फिर ऐसा क्या खास था ऑक्टेवियन में? उसकी खासियत उसका खून था। उसका रिश्ता था।
उसकी मां अटिया रोम के सबसे ताकतवर और मशहूर शख्स जूलियस सीजर की भतीजी थी। जी हां, वही जूलियस सीजर जिसका नाम आज भी दुनिया के महानतम योद्धाओं और नेताओं में गिना जाता है। सीजर की अपनी कोई औलाद नहीं थी और उनकी नजर इस होनहार युवक पर बहुत पहले ही टिक चुकी थी। ऑक्टेवियन भले ही शारीरिक रूप से कमजोर था, लेकिन उसका दिमाग किसी भी तलवार से ज्यादा तेज था। वो शांत स्वभाव का था। चीजों को बहुत गहराई से समझता था और सही वक्त का इंतजार करना जानता था। सीजर ने ऑक्टेवियन की इस काबिलियत को पहचान लिया था। वो उसे अपने साथ सैनिक अभियानों पर ले जाने लगे। उसे सियासत के दांव पेच सिखाने लगे। वो उसे सिर्फ एक रिश्तेदार की तरह नहीं बल्कि अपने वारिस की तरह तैयार कर रहे थे। ऑक्टवियन भी अपने नाना या कहें अपने महान अंकल सीजर को भगवान की तरह पूजता था। वो उनकी हर बात को ध्यान से सुनता और सीखता था। वह देख रहा था कि कैसे सीजर अपनी सूझबूझ और हिम्मत से दुश्मनों को धूल चटाते थे और लोगों का दिल जीतते थे। ऑक्टवियन के लिए यह सब एक सपने जैसा था।
एक तरफ रोम की खतरनाक सियासत थी जहां हर रोज किसी ना किसी का कत्ल होता था और दूसरी तरफ जूलियस सीजर जैसी चट्टान का सहारा था। सीजर ने उसे दुनिया की सबसे बेहतरीन शिक्षा दिलवाई। उसे ग्रीक भाषा, फिलॉसफी और भाषण देने की कला में माहिर बनाया गया। सीजर जानते थे कि भविष्य के मुकाबले सिर्फ तलवार से नहीं बल्कि दिमाग और शब्दों से भी लड़े जाएंगे। ऑक्टेवियन को फौजी ट्रेनिंग के लिए भी भेजा गया। जहां उसने अपनी कमजोर सेहत के बावजूद खुद को साबित करने की पूरी कोशिश की। वो एक बेहतरीन घुड़सवार बना और सेना को संभालने के गुण सीखे। लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। ऑक्टवियन जब अपनी मिलिट्री ट्रेनिंग के लिए रोम से दूर था तभी उसे वह खबर मिली जिसने उसकी दुनिया को हमेशा के लिए बदल कर रख दिया। एक ऐसी खबर जो ना सिर्फ उसके लिए बल्कि पूरे रोम के लिए एक भूचाल लेकर आने वाली थी। जिस इंसान को वह अपना सब कुछ मानता था। जिस इंसान की छत्रछाया में वह खुद को महफूज़ समझता था। उसी जूलियस सीजर की रोम के सीनेट में उन्हीं के दोस्तों और साथियों ने खंजरों से गोद बेरहमी से हत्या कर दी थी। यह खबर ऑक्टवियन के लिए किसी विशाल पर्वत के टूटने जैसी थी। वो अकेला रह गया था। उसका सहारा छिन चुका था। रोम में उसके दुश्मनों की कोई कमी नहीं थी और अब वह सब उसे भी खत्म करना चाहते थे। उसके शुभचिंतकों ने उसे सलाह दी कि वह छिप जाए। अपनी जान बचाए। लेकिन ऑक्टेवियन के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था। उसके कानों में सीजर की सिखाई बातें गूंज रही थी। उसने फैसला किया कि वह डरेगा नहीं, भागेगा नहीं। वो रोम वापस जाएगा और अपने नाना की विरासत पर अपना हक जताएगा। यह एक ऐसा फैसला था जो किसी आत्महत्या से कम नहीं था। एक 18 साल का नौजवान जिसके पास ना कोई सेना थी, ना कोई राजनीतिक तजुर्बा। वह रोम के सबसे ताकतवर और खूंखार लोगों से टकराने जा रहा था। जब सीजर की वसीयत का अध्ययन किया गया तो पूरे रोम में टहलका मच गया। सीजर ने अपनी सारी दौलत और अपना नाम उस युवक के नाम कर दिया था जिसे कोई जानता तक नहीं था। गियस ऑक्टवियन अब सिर्फ ऑक्टवियन नहीं था। वो अब गियस जूलियस सीजर ऑक्टवियंस बन चुका था। सीजर का गोद लिया हुआ बेटा और उसका आधिकारिक वारिस। इस एक घोषणा ने उसे रातोंरात रोम की सियासत का सबसे प्रमुख खिलाड़ी बना दिया। लेकिन इस विरासत के साथ उसे मिली थी एक खूनी दुश्मनी। अब सवाल यह था कि क्या यह नौजवान इस भारी जिम्मेदारी को उठा पाएगा? क्या वह अपने महान पिता का बदला ले पाएगा? या फिर रोम के भूखे शिकारी उसे भी अपना शिकार बना लेंगे। यहीं से शुरू होती है ओगस्टसस के बनने की असली कहानी।
अध्याय नंबर दो
सीजर की परछाई और
एक खूनी विरासत।
जब विरासत में दौलत नहीं बल्कि
दुश्मन और एक बदला मिला। कल्पना कीजिए आप 18
साल के हैं। आपके सबसे विशाल आदर्श और रक्षक की बेरहमी से हत्या कर दी गई है।
और हत्यारे कोई और नहीं बल्कि वही लोग हैं जो कल तक उनके साथ कसमें खाते थे। आपको
विरासत में बेशुमार दौलत तो मिली है लेकिन साथ ही मिली है एक जिम्मेदारी एक बदला
लेने का बोझ और आपके चारों तरफ दुनिया के सबसे शातिर और क्रूर राजनेता हैं जो आपको
एक कीड़े की तरह मसल देना चाहते हैं। यही हालत थी ऑक्टेवियन की। जब वो रोम वापस
लौटा तो उसका स्वागत फूलों से नहीं बल्कि शक और नफरत भरी निगाहों से हुआ। सीजर के
हथियारों, ब्रूट्स
और कैसियस खुद को रोम का रक्षक बता रहे थे। उनका कहना था कि उन्होंने एक तानाशाह
को मारकर रोम के गणराज्य को बचाया है। रोम की जनता भी बंटी हुई थी। कुछ लोग सीजर
को नायक मानते थे तो कुछ खलनायक। इस मुश्किल हालात में एक और बहुत अहम खिलाड़ी था
मार्केंटनी।
मार्केंटनी सीजर का सबसे वफादार दोस्त
और एक बहादुर जनरल था। सीजर की मौत के बाद उसे लगा कि अब रोम की बागडोर उसी के हाथ
में आएगी। वह खुद को सीजर का असली वारिस समझ रहा था। जब दुबले पतले से ऑक्टवियन ने
आकर कहा कि वह सीजर का असली वारिस है तो एंटनी ने उसका उपहास किया। उसने ऑक्टेवियन
को एक बच्चा समझकर नजरअंदाज कर दिया। उसने सीजर की वसीयत के मुताबिक ऑक्टवियन को
उसकी दौलत देने से भी इंकार कर दिया। एंटनी की नजर में ऑक्टेवियन एक मामूली रुकावट
था जिसे वह जब चाहे हटा सकता था। यह ऑक्टवियन के लिए पहली और सबसे मुख्य बेइज्जती
थी। लेकिन यहीं पर ऑक्टवियन ने अपनी समझदारी का पहला सबूत दिया। वो एंटनी से सीधे
नहीं टकराया। वो जानता था कि अभी वह बहुत कमजोर है। उसने एक अलग रास्ता अपनाया।
उसने अपने पिता जूलियस सीजर के नाम का इस्तेमाल करना शुरू किया। सीजर ने अपनी
वसीयत में रोम के हर नागरिक को कुछ पैसे देने का वादा किया था। जब एंटनी ने वह
पैसे देने से मना कर दिया तो ऑक्टेवियन ने अपनी खुद की संपत्ति बेचकर और दोस्तों
से उधार लेकर लोगों को वह पैसे बांटे। इस एक कदम ने उसे रोम की आम जनता के बीच
तुरंत लोकप्रिय बना दिया। लोग उसे सीजर का बेटा कहकर बुलाने लगे। वह देखने लगे कि यह
युवक अपने महान पिता के वादों को पूरा कर रहा है। ऑक्टवियन यहीं नहीं रुका। उसने
सीजर के पुराने सैनिकों को इकट्ठा करना शुरू किया। यह वह सैनिक थे जो सीजर के लिए
अपनी जान भी दे सकते थे। उन्होंने जब देखा कि सीजर का बेटा अपने पिता का सम्मान
वापस दिलाने के लिए संघर्ष कर रहा है तो वह उसके झंडे के नीचे जमा होने लगे। देखते
ही देखते ऑक्टेवियन के पास अपनी एक छोटी लेकिन वफादार सेना तैयार हो गई। अब वह
सिर्फ एक नाम नहीं था। वह एक ताकत बन चुका था। यह देखकर मार्क एंटनी और सीनेट के
बाकी सदस्यों के कान खरे हो गए। जिस युवक को वह कल तक बच्चा समझ रहे थे, वह अब उनके लिए
एक खतरा बनता जा रहा था।
रोम की सियासत के दो मुख्य ध्रुव बन
चुके थे।
एक तरफ थे सीजर के हत्यारे ब्रूट्स
और कैसियस जो अपनी सेनाएं लेकर रोम से दूर पूर्वी प्रांतों में अपनी ताकत में
इजाफा कर रहे थे। दूसरी तरफ रोम में मार्क एंटनी था जो अपनी ताकत के नशे में चूर
था और इन दोनों के बीच में उभर रहा था ऑक्टवियन। एक ऐसा खिलाड़ी जिसे कोई समझ नहीं
पा रहा था।
ऑक्टवियन ने एक और शानदार चाल चली।
उसने सीनेट का दरवाजा खटखटाया। सीनेट में सिसरो जैसे कई प्रमुख नेता थे जो मार्क
एंटनी की अधिक होती ताकत से डरते थे। उन्हें लगा कि वह इस युवक ऑक्टवियन का
इस्तेमाल एंटनी के खिलाफ कर सकते हैं। उन्होंने सोचा इस युवक को जरा सा बढ़ावा
देंगे। एंटनी को खत्म करने के बाद इसे दूध में से मक्खी की तरह निकाल फेंकेंगे।
उन्होंने ऑक्टेवियन को कानूनी तौर पर सेना रखने की इजाजत दे दी। यह उनकी जिंदगी की
सबसे विशाल भूल साबित होने वाली थी। उन्हें अंदाजा ही नहीं था कि वह जिस चिंगारी
को हवा दे रहे हैं, वह कल एक
ऐसी आग बनेगी जो पूरे रोम को अपनी चपेट में ले लेगी। अब ऑक्टवियन के पास जनता का
साथ था। सीजर के वफादार सैनिकों की फौज थी और सीनेट की कानूनी मंजूरी भी थी। उसने
खुलेआम मार्क एंटनी को रोम का दुश्मन घोषित कर दिया। अब मुकाबला आमने-सामने का था।
बच्चा समझकर नजरअंदाज किया जाने वाला युवक अब रोम के सबसे ताकतवर शख्स को चुनौती
दे रहा था। इस मुकाबले का नतीजा क्या होगा?
क्या ऑक्टेवियन अपने से कई गुना ज्यादा अनुभवी और ताकतवर मार्क एंटनी को हरा
पाएगा या यह उसका पहला और आखिरी मुकाबला साबित होगा? यह सब जानने के लिए आपको हमारे साथ बने रहना होगा। दोस्तों, कहानी के इस बिंदु
पर आपको क्या लगता है?
अध्याय नंबर तीन
दुश्मन का दुश्मन
दोस्त सत्ता के लिए एक खतरनाक गठबंधन
जब तीन भूखे शेर एक साथ शिकार पर
निकले। ऑक्टेवियन और मार्केंटनी के बीच का मुकाबला शुरू हो चुका था। रोम की धरती
एक बार फिर अपने ही बेटों के खून से लाल होने वाली थी। संघर्ष हुए और सबको हैरान
करते हुए ऑक्टवियन की सेना ने एंटनी की सेना को पीछे धकेल दिया। लेकिन इस जीत की
एक खास कीमत चुकानी आवश्यक हुई। मुकाबले में रोम के दोनों काउंसिल जो सेना का
नेतृत्व कर रहे थे मारे गए। अब ऑक्टेवियन की सेना तो जीत गई थी लेकिन उसका कोई
आधिकारिक नेता नहीं था। ऑक्टेवियन ने इस मौके का फायदा उठाया। उसने अपनी सेना के
साथ रोम की तरफ कच किया और सीनेट को मजबूर कर दिया कि वह उसे कंसिल घोषित करें।
सिर्फ 19 साल की
उम्र में ऑक्टेवियन रोम के सबसे ऊंचे पद पर पहुंच गया था। यह एक अविश्वसनीय
उपलब्धि थी। जिस सीनेट ने उसे एक कठपुतली समझकर इस्तेमाल करना चाहा था। आज वही
सीनेट उसके सामने बेबस खड़ी थी। उसने सीनेट से सीजर के हत्यारों को देश का दुश्मन
घोषित करवाया और उनकी सारी संपत्ति जब्त करने का आदेश दिया। लेकिन ऑक्टवियन जानता
था कि असली मुकाबला अभी बाकी है।
ब्रूट्स और कैसियस पूर्व में एक बहुत
विशाल सेना जमा कर चुके थे और पश्चिम में मार्क एंटनी भी अपनी हार के बाद फिर से
ताकतवर हो रहा था। उसके साथ एक और प्रमुख जनरल था लेपिडस। ऑक्टेवियन समझ गया था कि
वो अकेला इन दोनों ताकतों से एक साथ नहीं सामना कर सकता। उसे एक साथी की जरूरत थी
और यहीं पर उसने एक ऐसा फैसला लिया जिसने सबको चौंका दिया। उसने अपने सबसे मुख्य
दुश्मन मार्क एंटनी को दोस्ती का पैगाम भेजा। यह सियासत का सबसे पुराना नियम है।
दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है। ऑक्टेवियन,
एंटनी और लेपिडस। तीनों जानते थे कि अगर वह आपस में संघर्ष करते रहे तो सीजर
के हत्यारे इसका फायदा उठाएंगे और उन तीनों को खत्म कर देंगे। इसलिए अपनी आपसी
नफरत और दुश्मनी को कुछ समय के लिए भुलाकर इन तीनों ने हाथ मिला लिया। इतिहास में
इस गठबंधन को सेकंड ट्रायम विरेट के नाम से जाना जाता है। यह कोई आम समझौता नहीं
था। इन तीनों ने खुद को अगले 5
सालों के लिए रोम का सबसे विशाल तानाशाह घोषित कर दिया। उनके पास किसी को भी
मारने, किसी की
भी संपत्ति जब्त करने और कोई भी कानून बनाने की असीमित शक्ति थी। यह रोम के
गणराज्य के ताबूत में आखिरी कील थी। उनका पहला काम था अपने दुश्मनों को खत्म करना
और अपनी सेनाओं के लिए पैसा इकट्ठा करना। इसके लिए उन्होंने एक खूनी खेल शुरू किया
जिसे प्रोस्क्रिप्सन कहा जाता है। उन्होंने अपने सभी राजनीतिक और निजी दुश्मनों की
एक लिस्ट बनाई और उन्हें सार्वजनिक रूप से मौत की सजा सुना दी। कोई भी नागरिक इन
लिस्टेड लोगों को मार सकता था और इनाम के तौर पर उनकी संपत्ति का एक हिस्सा पा
सकता था। पूरे रोम में दहशत का माहौल फैल गया। भाई ने भाई को मारा, बेटे ने बाप को
धोखा दिया। हजारों अमीर और प्रभावशाली लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। जिसमें
महान वक्ता सिसरो भी शामिल था। जिसने कभी ऑक्टवियन का साथ दिया था। ऑक्टवियन ने
उसे भी नहीं बख्शा। यह दिखाता है कि सत्ता की राह में वह कितना क्रूर और निर्दयी
हो सकता था। इस खूनी खेल से उन्होंने बहुत सारा पैसा जमा कर लिया। अब वह अपनी
विशाल सेना के साथ ब्रूट्स और कैसियस का सामना करने के लिए तैयार थे। ग्रीस के
फिलिपी नाम की जगह पर इतिहास का एक सबसे निर्णायक मुकाबला हुआ। एक तरफ थे
ऑक्टेवियन और एंटनी जो सीजर का बदला लेने निकले थे। दूसरी तरफ थे ब्रूट्स कैसियस
जो गणराज्य को बचाने का आखिरी संघर्ष कर रहे थे। यह एक भयानक मुकाबला था। दिलचस्प
बात यह है कि इस मुकाबले में ऑक्टवियन का प्रदर्शन बहुत खराब रहा। वो बीमार हो गया
था और उसकी सेना लगभग हार चुकी थी। लेकिन दूसरी तरफ मार्क एंटिनी ने अपनी बहादुरी
और सैन्य कौशल का परिचय देते हुए कैसियस की सेना को हरा दिया। कैसियस ने हार के डर
से आत्महत्या कर ली। कुछ दिनों बाद दूसरे मुकाबले में एंटनी ने ब्रूट्स को भी हरा
दिया। ब्रूट्स ने भी हारने के बाद अपनी जान दे दी। सीजर का बदला पूरा हो चुका था।
उसके हत्यारे अब इस दुनिया में नहीं थे। जीत के बाद इन तीनों तानाशाहों ने रोम के
साम्राज्य को आपस में बांट लिया। मार्क एंटनी जो खुद को सबसे मुख्य हीरो समझ रहा
था। उसने सबसे अमीर और शानदार हिस्सा यानी पूर्व अपने लिए चुना। इसमें मिस्र और
ग्रीस जैसे प्रांत शामिल थे। लेपिडस को अफ्रीका दिया गया और ऑक्टवियन को क्या मिला? उसे मिला इटली और
पश्चिम के बाकी बचे हुए प्रांत जो युद्ध से तबाह हो चुके थे और जहां कई समस्याएं
थी। एंटनी को लगा कि उसने ऑक्टेवियन को एक बेकार सा हिस्सा देकर फिर से बेवकूफ बना
दिया है। वो ऐशो आराम करने के लिए मिस्र की रानी क्लियोपेट्रा के पास चला गया।
लेकिन वह यह नहीं जानता था कि जिस हिस्से को वह बेकार समझ रहा था वही रोम का दिल
था और ऑक्टेवियन अब इस दिल पर राज करने वाला था। यह गठबंधन दुश्मनों को खत्म करने
के लिए बना था। अब दुश्मन खत्म हो चुके थे। तो सवाल यह था कि क्या यह दोस्ती बनी
रहेगी? या फिर
अब यह तीन भूखे शेर एक दूसरे का ही शिकार करेंगे? सत्ता की इस कहानी में अब एक नया और ज्यादा खतरनाक अध्याय
शुरू होने वाला था।
अध्याय नंबर चार
दो शेरों का
मुकाबला ऑक्टेवियन बनाम मार्क एंटनी
जब प्यार सियासत और धोखा एक महायुद्ध
का कारण बने सीजर के हथियारों का खात्मा हो चुका था। रोम पर अब तीन लोगों का राज
था। ऑक्टेवियन, मार्केंटनी
और लेपिडस। कागज पर तो यह एक गठबंधन था। लेकिन हकीकत में यह एक टाइम बम था जिसकी
सुई टिक टिक कर रही थी। हर कोई जानता था कि रोम पर तीन लोग एक साथ राज नहीं कर
सकते। अंत में सिर्फ एक ही बचेगा। लेपिड्स इन तीनों में सबसे कमजोर था। इसलिए असली
मुकाबला ऑक्टवियन और मार्क एंटनी के बीच ही होना था। यह दो बिल्कुल अलग तरह के
इंसान थे। मार्क एंटनी एक शानदार योद्धा था। एक करिश्माई नेता जो अपने सैनिकों के
साथ खाता पीता और सोता था। उसके सैनिक उसके लिए जान देने को तैयार रहते थे। लेकिन
वह ऐशो आराम का भी शौकीन था। उसे विशाल पार्टियों और शराब का शौक था। वह अक्सर
अपनी भावनाओं में बहकर फैसले लेता था।
दूसरी तरफ था ऑक्टवियन। वह कोई महान
योद्धा नहीं था। उसकी सेहत भी खराब रहती थी। लेकिन वह बहुत ज्यादा अनुशासित, धैर्यवान और एक
शातिर दिमाग का मालिक था। वो हर कदम बहुत सोच समझ कर उठाता था और उसका सबसे मुख्य
हथियार था प्रोपेगेंडा यानी प्रचार। एंटीनी ने साम्राज्य का पूर्वी हिस्सा संभाला
और मिस्र की रानी क्लियोपेट्रा के प्यार में संलग्न हो गया। क्लियोपेट्रा सिर्फ
खूबसूरत ही नहीं बल्कि बहुत बुद्धिमान महत्वाकांक्षी भी थी। वो मिस्र
को फिर से एक महान साम्राज्य बनाना चाहती थी। एंटनी और क्लियोपेट्रा मिलकर एक नए
साम्राज्य का सपना देखने लगे जिसका केंद्र रोम नहीं बल्कि मिस्र का शहर
अलेग्जेंडरिया होगा। एंटनी रोम की परंपराओं को भूलकर मिस्र के रंग में रंगने लगा।
वो खुद को एक पूर्वी राजा की तरह पेश करने लगा जो रोम के लोगों को बिल्कुल पसंद
नहीं आया। इधर रोम में बैठा ऑक्टवियन एंटनी की हर हरकत पर नजर रखे हुए था। उसने इस
मौके का भरपूर फायदा उठाया। उसने रोम के लोगों के बीच एंटनी के खिलाफ प्रचार करना
शुरू कर दिया। उसने लोगों को बताया कि कैसे एंटनी एक विदेशी रानी के प्यार में
अंधा होकर रोम को भूल गया है। उसने अफवाहें फैलाई कि एंटनी रोम के प्रांतों को
क्लियोपेट्रा के बच्चों को तोहफे में दे रहा है। उसने एंटनी को एक गद्दार और
अय्याश शख्स के रूप में पेश किया जो रोम की शान को मिट्टी में मिला रहा है। ऑक्टेवियन
खुद को एक सच्चे रोमन के तौर पर पेश कर रहा था। वह सादे वस्त्र पहनता था। एक
साधारण घर में रहता था और दिन रात रोम की भलाई के लिए काम करता था। उसने रोम में
कई निर्माण कार्य शुरू करवाए। सैनिकों की समस्याओं को हल किया और कानून व्यवस्था
को सुधारा। वो लोगों को यह दिखा रहा था कि असली रोमन नेता वो है एंटनी नहीं। इस
प्रोपेगेंडा युद्ध का सबसे अहम बिंदु तब आया जब ऑक्टेवियन ने किसी तरह मार्क एंटनी
की वसीयत हासिल कर ली और उसे रोम के सीनेट में सबके सामने सुनाया। उस वसीयत में
लिखा था कि एंटनी चाहता है कि मरने के बाद उसे रोम में नहीं बल्कि क्लियोपेट्रा के
बगल में एलेग्जेंडरिया में दफनाया जाए। यह सुनना था कि पूरे रोम में गुस्से की लहर
द्वार गई। यह रोम का सबसे विशाल अपमान था। लोगों को यकीन हो गया कि एंटनी अब रोमन
नहीं रहा। वो पूरी तरह से मिस्र का हो चुका है। ऑक्टेवियन ने इस गुस्से की आग में
घी डालने का काम किया। उसने सीनेट को एंटनी के खिलाफ नहीं बल्कि क्लियोपेट्रा के
खिलाफ युद्ध छेड़ने के लिए मना लिया। यह एक बहुत ही चालाक चाल थी। वो इसे दो रोमन
जनरलों के बीच का गृह युद्ध नहीं दिखाना चाहता था। बल्कि वह इसे रोम और एक विदेशी
दुश्मन के बीच के मुकाबले के तौर पर पेश करना चाहता था। इस बीच कमजोर कड़ी लेपिडस
ने ऑक्टवियन के खिलाफ बगावत करने की कोशिश की। लेकिन ऑक्टवियन ने बड़ी आसानी से
उसकी सेना को अपनी तरफ कर लिया और लेपिडस को सत्ता से बेदखल कर दिया। अब मैदान में
सिर्फ दो ही खिलाड़ी बचे थे। ऑक्टेवियन और एंटनी। दुनिया की सबसे विशाल सल्तनत का
भविष्य अब एक आखिरी और निर्णायक मुकाबले पर टिका था। एक तरफ था ऑक्टवियन जिसके पास
रोम की जनता और सीनेट का समर्थन था। दूसरी तरफ था मार्क एंटनी जिसके पास एक बहुत
विशाल सेना और मिस्र की दौलत थी और साथ में थी क्लियोपेट्रा की मोहब्बत। यह सिर्फ
दो इंसानों का मुकाबला नहीं था। यह दो संस्कृतियों का मुकाबला था। पश्चिम बनाम
पूर्व, रोम का
अनुशासन बनाम मिस्र की शान शौकत। अब दुनिया सांस रोक कर देख रही थी कि इस
महासंग्राम में जीत किसकी होगी। क्या एंटनी का सैन्य अनुभव ऑक्टवियन की चालाकी पर
भारी होगा? या
ऑक्टवियन का प्रोपेगेंडा एंटनी की ताकतवर सेना को हरा देगा। इस मुकाबले का फैसला
जमीन पर नहीं बल्कि समंदर में होने वाला था।
अध्याय नंबर पांच
ऑक्टेवियन का
महासंग्राम जब समंदर ने लिखा रोम का नया मुकद्दर
एक मुकाबला जिसने एक साम्राज्य को
जन्म दिया। अब दुनिया की दो सबसे विशाल ताकतें आमने-सामने थी। ऑक्टेवियन और
मार्केंटनी। यह वह टकराव था जिसका इंतजार पूरा रोमन साम्राज्य कर रहा था। इस
मुकाबले का नतीजा ही यह तय करने वाला था कि रोम का भविष्य कैसा होगा। क्या वह एक
पारंपरिक गणराज्य बना रहेगा जैसा ऑक्टेवियन दावा कर रहा था या फिर वह एक पूर्वी
राजशाही बन जाएगा जैसा एंटनी और क्लियोपेट्रा चाहते थे। इस महायुद्ध का मैदान बना
ग्रीस के पश्चिमी तट पर एक्टियम की खारी। एंटनी और क्लियोपेट्रा अपनी विशाल नौसेना
के साथ इस खारी में डेरा डाले हुए थे। उनके पास विशाल जहाज थे जो किसी तैरते हुए
किले की तरह लगते थे। उनकी योजना थी कि वह ऑक्टेवियन की सेना को समंदर में ही कुचल
देंगे। दूसरी तरफ ऑक्टवियन की नौसेना का नेतृत्व उसका सबसे भरोसेमंद दोस्त और एक
शानदार एडमिरल मार्कस अग्रिप्पा कर रहा था। अग्रिप्पा के जहाज एंटनी के जहाजों के
मुकाबले छोटे और हल्के थे। लेकिन वह ज्यादा तेज थे और उन्हें चलाना आसान था। लंबे
समय तक दोनों सेनाएं एक दूसरे का इंतजार करती रही। एंटनी की सेना में बीमारियां
फैलने लगी और रसद की कमी होने लगी। उसके कई साथी उसका साथ त्याग कर ऑक्टवियन के पास
जाने लगे। आखिरकार एंटनी ने हमला करने का फैसला किया।
2
सितंबर 31 ईसा
पूर्व इतिहास के सबसे प्रसिद्ध समुद्री मुकाबलों में से एक्टियम का मुकाबला शुरू
हुआ। समंदर का नीला पानी हजारों जहाजों और लाखों सैनिकों से भर गया। एंटनी के भारी
जहाजों ने हमला किया लेकिन अग्रिप्पा के छोटे और फुर्तीले जहाजों ने उन्हें घेर
लिया। वो एंटनी के जहाजों के पास जाते उन पर आग के गोले फेंकते और तुरंत पीछे हट
जाते। एंटनी के विशाल जहाज अपनी जगह पर ही फंस कर रह गए। वह ना तो ठीक से घूम पा
रहे थे और ना ही दुश्मन का पीछा कर पा रहे थे। मुकाबला अभी चल ही रहा था कि कुछ
ऐसा हुआ जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। क्लियोपेट्रा जो अपने जहाजों के बेड़े के
साथ मुकाबला देख रही थी अचानक घबरा गई। उसने अपने जहाजों को वापस मिस्र की ओर घुमा
लिया और मुकाबले के मैदान से भाग गई। मार्क एंटनी ने जब देखा कि क्लियोपेट्रा जा
रही है तो उसने एक अविश्वसनीय काम किया। उसने अपनी सेना, अपने सैनिकों और
अपने मुकाबले को बीच में ही त्याग दिया और सिर्फ एक छोटे जहाज में क्लियोपेट्रा के
पीछे-पीछे चल दिया। एक महान जनरल का यह बर्ताव किसी को समझ नहीं आया। क्या वह
प्यार में इतना अंधा हो गया था कि उसे अपनी जिम्मेदारियों का भी ख्याल नहीं रहा या
उसे लगा कि मुकाबला अब जीता नहीं जा सकता। वजह जो भी हो अपने लीडर को भागते देख
एंटनी की सेना का मनोबल टूट गया। बिना किसी नेतृत्व के वह ज्यादा देर तक नहीं टिक
सके। एक-एक करके उनके जहाजों ने या तो आत्मसमर्पण कर दिया या वह डुबो दिए गए।
एक्टियम का मुकाबला खत्म हो चुका था। ऑक्टेवियन को एक शानदार और निर्णायक जीत मिली
थी। एंटनी और क्लियोपेट्रा भागकर मिस्र पहुंच गए। लेकिन अब उनके पास कुछ नहीं बचा
था। उनकी सेना खत्म हो चुकी थी। उनका सम्मान मिट्टी में मिल गया था। ऑक्टवियन अपनी
सेना के साथ उनका पीछा करते हुए मिस्र पहुंचा। एंटनी ने आखिरी बार संघर्ष करने की
कोशिश की। लेकिन उसके बचे खुचे सैनिकों ने भी ऑक्टवियन के सामने हथियार डाल दिए।
अपनी हार और बेइज्जती से टूटकर मार्केंटनी ने आत्महत्या कर ली। क्लियोपेट्रा को
ऑक्टवियन ने बंदी बना लिया। ऑक्टेवियन उसे बंदी बनाकर रोम ले जाना चाहता था और
अपनी जीत के जश्न में उसे पूरी दुनिया के सामने जलील करना चाहता था। लेकिन
क्लियोपेट्रा एक स्वाभिमानी रानी थी। उसने किसी की गुलामी स्वीकार नहीं की। कहा
जाता है कि उसने एक जहरीले सांप से खुद को डसवाकर अपनी जान दे दी। इस तरह रोम के
दो सबसे मुख्य दुश्मनों का अंत हो गया। मिस्र अब रोम का एक प्रांत बन गया और उसकी
बेशुमार दौलत पर ऑक्टेवियन का कब्जा हो गया। अब ऑक्टेवियन के रास्ते में कोई नहीं
था। वो 30 साल से
चल रहे गृह युद्धों का विजेता था। वो पूरे रोमन साम्राज्य का अकेला और निर्विवाद
मालिक था। रोम के मार्गों पर जश्न मनाया जा रहा था। लोगों को लग रहा था कि अब
शांति का द्वार आएगा। लेकिन उनके मन में एक अहम सवाल भी था। अब आगे क्या होगा? क्या ऑक्टेवियन
भी जूलियस सीजर की तरह खुद को तानाशाह घोषित कर देगा? क्या वो रोम के
गणराज्य को हमेशा के लिए खत्म कर देगा?
पूरी दुनिया की नजरें अब ऑक्टेवियन के अगले कदम पर टिकी थी।
अध्याय नंबर छह।
प्रिंसेप्स का
जन्म सम्राट नहीं पहला नागरिक।
कैसे उसने तानाशाही को लोकतंत्र का
आवरण पहनाया। एक्टियम की जीत और एंटनी क्लियोपेट्रा की मौत के बाद ऑक्टेवियन जब
रोम वापस लौटा तो उसका स्वागत एक देवता की तरह हुआ। 30 साल से चल रहे
खूनखराबे और अनिश्चितता के बाद रोम को आखिरकार एक ऐसा नेता मिला था जिसने शांति
स्थापित की थी। लोग थक चुके थे। वो बस अब अमन और चैन चाहते थे। लेकिन रोम के
संभ्रांत वर्ग यानी सीनेटरों के मन में एक डर था। उन्हें जूलियस सीजर का हश्र याद
था। सीजर ने भी सारी ताकत अपने हाथ में ले ली थी और खुद को आजीवन तानाशाह घोषित कर
दिया था जिसका नतीजा उसकी हत्या के रूप में सामने आया। सीनेटरों को डर था कि
ऑक्टवियन भी उसी रास्ते पर चलेगा। अगर वह खुलेआम खुद को राजा या तानाशाह घोषित
करता तो शायद उसका भी वही हाल होता जो सीजर का हुआ था। ऑक्टेवियन इस बात को बहुत
अच्छी तरह समझता था। वो सीजर की तरह ताकतवर तो बनना चाहता था लेकिन उसकी गलतियों
को दोहराना नहीं चाहता था। यहीं पर उसने अपनी राजनीतिक समझ और दूरदर्शिता का वह
परिचय दिया जो इतिहास में मिसाल बन गया। उसने एक ऐसा सिस्टम बनाया जो देखने में तो
गणराज्य लगता था लेकिन जिसकी सारी ताकत असल में उसी के हाथ में थी। उसने ऐलान किया
कि गृह युद्ध अब खत्म हो चुका है और वो गणराज्य की सभी शक्तियों को वापस सीनेट और रोम
की जनता को सौंप रहा है। यह एक मास्टर स्ट्रोक था। उसने खुद को एक तानाशाह की तरह
नहीं बल्कि एक सेवक की तरह पेश किया जो सिर्फ रोम की भलाई चाहता है। सीनेट जो उसकी
इस अदा से बहुत खुश हुई उसे बदले में और ज्यादा सम्मान और शक्तियां देने लगी।
उन्होंने उसे ऑगस्टस की उपाधि दी जिसका मतलब होता है महान या पूजनीय। यह सिर्फ एक
नाम नहीं था। यह उसे एक दैवीय सम्मान देने जैसा था। उन्होंने उसे प्रिंसेसिप्स का
खिताब भी दिया जिसका मतलब होता है पहला नागरिक। वो रोम का राजा या सम्राट नहीं
कहलाया बल्कि वह रोम के सभी नागरिकों में पहला कहलाया। यह शब्द सुनने में बहुत
साधारण लगता है। लेकिन इसी शब्द के पीछे उसकी सारी ताकत छिपी थी। ऑगस्टसस ने
गणराज्य के पुराने पदों जैसे काउंसिल,
सीनेटर, मजिस्ट्रेट
को खत्म नहीं किया। वह सब वैसे ही चलते रहे। चुनाव भी होते रहे। लेकिन ऑगस्टस ने
धीरे-धीरे सारी महत्वपूर्ण शक्तियां कानूनी तौर पर अपने पास ले ली। उसने सेना का
सर्वोच्च नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया। किसी भी प्रांत का गवर्नर या कोई भी जनरल
उसकी इजाजत के बिना युद्ध नहीं छेद सकता था। उसने ट्रिब्यून की शक्ति भी ले ली
जिससे उसे किसी भी कानून को वीटो करने यानी रद्द करने का अधिकार मिल गया। उसने
प्रांतों को दो हिस्सों में बांट दिया। शांत और सुरक्षित प्रांतों का शासन सीनेट
को दे दिया। लेकिन जितने भी सीमावर्ती और अशांत प्रांत थे जहां सेना की जरूरत थी
उनका नियंत्रण उसने अपने हाथ में रखा। इसका मतलब यह था कि रोम की लगभग सारी सेना
सीधे तौर पर उसी के प्रति वफादार थी। तो कागज पर सीनेट काम कर रही थी। चुनाव हो
रहे थे। गणराज्य जिंदा था। लेकिन असल में हर अहम फैसला ऑगस्टसस की मर्जी से ही
होता था। उसने सत्ता की कड़वी गोली को लोकतंत्र की मीठी चाशनी में लपेट कर रोम को
खिला दिया था और रोम ने उसे खुशी-खुशी खा भी लिया था। उसने लोगों का दिल जीतने के
लिए और भी बहुत कुछ किया। मिस्र से लूटी हुई दौलत से उसने रोम काया पलट कर दिया।
उसने कहा था मुझे रोम ईंटों का शहर मिला था। मैं इसे संगमरमर का शहर बनाकर जाऊंगा।
और उसने ऐसा ही किया। उसने शानदार मंदिर,
सार्वजनिक इमारतें, स्नानागार
और थिएटर बनवाए। उसने मार्गों और पुलों का जाल बिछाया। उसने एक पुलिस फोर्स और एक
फायर ब्रिगेड की स्थापना की ताकि आम नागरिक सुरक्षित महसूस कर सकें। उसने अनाज की
आपूर्ति को सुचारू किया ताकि रोम में कभी भुखमरी ना हो। वह अक्सर आम लोगों के बीच
जाता, उनकी
समस्याएं सुनता और खुद को उनके संरक्षक के रूप में पेश करता। उसने कला और साहित्य
को भी बहुत बढ़ावा दिया। वर्जिल,
होरेस और ओविड जैसे महान कवि उसी के शासनकाल में हुए। इन कवियों ने अपनी
रचनाओं में अगस्तस के युग को एक स्वर्ण युग के रूप में प्रस्तुत किया। यह सब उसके
प्रोपेगेंडा का ही एक हिस्सा था। वो हर तरफ से लोगों के दिमाग में यह बात बैठा
देना चाहता था कि उसी के नेतृत्व में रोम सुरक्षित और समृद्ध है। उसने अपनी छवि, एक पिता, एक रक्षक और
शांति के दूत के रूप में गढ़ी और वह इसमें पूरी तरह कामयाब रहा। रोम के लोग उसे
प्यार करने लगे। उसकी पूजा करने लगे। वह भूल गए थे कि जिस गणराज्य की वह कसमें
खाते थे, वह असल
में अब मर चुका है और उसकी कब्र पर एक नए साम्राज्य का जन्म हो चुका था। लेकिन
क्या यह शांति और समृद्धि हमेशा कायम रहने वाली थी? क्या ऑगस्टस ने जो सिस्टम बनाया था, वह उसके बाद भी
चल पाएगा? यह वह
सवाल थे जिनके जवाब भविष्य के गर्भ में छिपे थे।
अध्याय नंबर सात
पैक्स रोमाना
ऑगस्टस का वह तोहफा जिसने दुनिया बदल दी।
200
सालों की वह शान थी जो एक आदमी की देन थी। ऑगस्टस ने जो व्यवस्था स्थापित की उसका
असर सिर्फ उसके जीवन काल तक ही सीमित नहीं रहा। उसने रोम को एक ऐसा तोहफा दिया
जिसे इतिहास पैक्स रोमाना या रोमन शांति के नाम से जानता है। यह कोई छोटा-मोटा
तोहफा नहीं था। यह लगभग 200
सालों तक चलने वाले शांति,
स्थिरता और समृद्धि के एक ऐसे दौर की शुरुआत थी जो पश्चिमी दुनिया ने पहले कभी
नहीं देखा था। कल्पना कीजिए एक ऐसी दुनिया जहां पीढ़ियों तक कोई विशाल गृह युद्ध
नहीं हुआ। जहां व्यापार फल फूल रहा था। जहां कानून का राज था और जहां साम्राज्य की
सीमाओं के भीतर लोग सुरक्षित महसूस करते थे। यह ऑगस्टस की सबसे विशाल विरासत थी।
उसने सालों के खून खराबे और अराजकता को खत्म करके एक ऐसी नीम रखी जिस पर एक महान
साम्राज्य खरा हुआ। तो सवाल यह है कि उसने यह किया कैसे? इसका जवाब सिर्फ
उसकी सैन्य ताकत में नहीं बल्कि उसके शानदार प्रशासन और दूरदर्शिता में छिपा है।
सबसे पहले उसने सेना में सुधार किया। पहले रोम की सेना जनरलों के प्रति वफादार
होती थी। जिसकी वजह से बार-बार गृह युद्ध होते थे। ऑगस्टस ने एक स्थाई पेशेवर सेना
बनाई जो सीधे सम्राट के प्रति वफादार थी। सैनिकों को एक निश्चित तनख्वाह और
रिटायरमेंट के बाद जमीन या पेंशन मिलती थी। इससे सेना में अनुशासन आया और वह किसी
एक जनरल के हाथ की कठपुतली बनने के बजाय पूरे साम्राज्य की रक्षा करने वाली ताकत
बन गई। उसने प्रिटोरियन गार्ड नाम की एक खास टुकड़ी भी बनाई जो सम्राट की निजी
अंगरक्षक होती थी। यह रोम शहर में तैनात एकमात्र सैन्य टुकड़ी थी जो यह सुनिश्चित
करती थी कि राजधानी में कोई बगावत ना हो सके। दूसरा उसने पूरे साम्राज्य के
प्रशासन को सुधारा। उसने प्रांतों के गवर्नरों पर कड़ी नजर रखी ताकि वह भ्रष्टाचार
ना कर सकें और आम लोगों पर जुल्म ना ढाए। उसने एक कुशल नौकरशाही का निर्माण किया
जिसमें सिर्फ अमीरों को ही नहीं बल्कि काबिल लोगों को भी जगह दी गई। उसने पूरे
साम्राज्य में जनगणना करवाई ताकि टैक्स व्यवस्था को सुधारा जा सके। टैक्स से आने
वाले पैसे का इस्तेमाल मार्ग बनाने,
पुल बनाने और सार्वजनिक इमारतों के रखरखाव में किया जाता था। पोगस्टसस के
शासनकाल में ही वह मशहूर कहावत बनी। सभी मार्ग रोम को जाते हैं। उसने मार्गों का
एक ऐसा बेहतरीन नेटवर्क बनवाया जो साम्राज्य के कोने-कोने को राजधानी से मिलाता
था। इन मार्गों से ना सिर्फ सेना तेजी से एक जगह से दूसरी जगह जा सकती थी बल्कि
इससे व्यापार में भी क्रांति आ गई। स्पेन से जैतून का तेल, मिस्र से अनाज, गॉल आज का फ्रांस
से शराब और भारत से मसाले आसानी से रोम पहुंचने लगे। समुद्र को डाकुओं से सुरक्षित
बनाया गया। जिससे समुद्री व्यापार भी फला फूला। इस आर्थिक समृद्धि का असर आम लोगों
के जीवन पर भी हुआ। शहरों का विकास हुआ। लोगों को रोजगार मिला और जीवन स्तर में
सुधार हुआ। ऑगस्टसस ने सामाजिक सुधारों पर भी बहुत ध्यान दिया। उसने विवाह और
परिवार के महत्व पर जोर दिया। उसने ऐसे कानून बनाए जो शादी को प्रोत्साहित करते थे
और तलाक को मुश्किल बनाते थे। उसका मानना था कि एक मजबूत साम्राज्य के लिए मजबूत
परिवार का होना बहुत जरूरी है। उसने रोम की पुरानी धार्मिक परंपराओं और नैतिक
मूल्यों को फिर से स्थापित करने की कोशिश की जो गृह युद्धों के दौरान खत्म हो गई
थी। यह सब कुछ इतना आसान नहीं था। साम्राज्य की सीमाएं बहुत विशाल थी और उन पर
हमेशा बर्बर कबीलों के हमलों का खतरा बना रहता था। ऑगस्टस के शासनकाल में जर्मनी
में रोमन सेना को एक बहुत विशाल हार का सामना करना आवश्यक हुआ था। जिसमें उनके तीन
लीजन सेना की टुकड़ियां पूरी तरह से नष्ट हो गए थे। इस हार ने ऑगस्टस को अंदर तक
हिला दिया था। इसके बाद उसने साम्राज्य के विस्तार की नीति को त्याग दिया और
सीमाओं को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया। उसने राइन और डेन्यूब नदियों को
साम्राज्य की स्थाई सीमा बना दिया। पैक्स रोमाना का मतलब यह नहीं था कि कहीं कोई
मुकाबला नहीं हो रहा था। सीमाओं पर छोटी-मोटी झड़पें चलती रहती थी। लेकिन
साम्राज्य के भीतर विशाल भूभाग पर शांति का राज था। यह एक अभूतपूर्व उपलब्धि थी।
ऑगस्टस ने एक बिखरते हुए गणराज्य को लेकर उसे एक ऐसे संगठित और शक्तिशाली
साम्राज्य में बदल दिया जो अगले कई 100
सालों तक दुनिया पर राज करने वाला था। उसने जो व्यवस्था बनाई वह इतनी मजबूत थी
कि उसके बाद नीरों और कालीगुला जैसे बुरे सम्राटों के आने के बावजूद साम्राज्य
चलता रहा। लेकिन क्या वो इंसान जो इतना विशाल साम्राज्य चला रहा था? अपनी निजी जिंदगी
में भी उतना ही सफल था। क्या संगमरमर के इस महान शहर को बनाने वाला अपनी पारिवारिक
उलझनों को सुलझा पाया था। यह एक अलग ही कहानी है।
अध्याय नंबर आठ
संगमरमर के
सिंहासन के पीछे का इंसान अगस्तस का निजी जीवन एक सम्राट की पारिवारिक त्रासदियां
और अकेलापन
हम अक्सर महान नेताओं को उनकी
उपलब्धियों, उनकी
जीती हुई जंगों और उनके बनाए गए साम्राज्यों से याद करते हैं। हम भूल जाते हैं कि
उन शानदार उपाधियों और संगमरमर के सिंहासनों के पीछे वह भी एक आम इंसान होते हैं।
जिनकी अपनी खुशियां, अपने दुख, अपनी चिंताएं और
अपनी कमजोरियां होती हैं। ऑगस्टस जिसने रोम को शांति दी और एक स्वर्ण युग की
शुरुआत की, उसकी
निजी जिंदगी त्रासदियों और निराशाओं से व्याप्त थी। वो सार्वजनिक जीवन में जितना
सफल था, अपने
परिवार के मामले में उतना ही परेशान और शायद असफल भी। ऑगस्टस की जिंदगी का सबसे
विशाल दुख और सबसे मुख्य चिंता थी उसकी विरासत। वह यह सुनिश्चित करना चाहता था कि
उसके बाद भी रोम में शांति बनी रहे और सत्ता का हस्तांतरण आराम से हो जाए। इसके
लिए उसे एक काबिल वारिस की जरूरत थी। लेकिन किस्मत इस मामले में उस पर बिल्कुल भी
मेहरबान नहीं थी। उसकी अपनी कोई संतान यानी बेटा नहीं था। उसकी सिर्फ एक बेटी थी
जूलिया जो उसकी पहली पत्नी स्क्रिबोनिया से हुई थी। ऑगस्टस अपनी बेटी जूलिया से
बहुत प्यार करता था। लेकिन उस प्यार से ज्यादा उसे अपनी राजनीतिक जरूरतें प्यारी
थी। उसने अपनी बेटी की जिंदगी को अपनी सियासत का एक मोहरा बना दिया। उसने जूलिया
की शादी सबसे पहले अपने भतीजे और माने हुए वारिस मार्सिलस से की। मार्सिलस एक
होनहार नौजवान था और ऑगस्टस उसे बहुत पसंद करता था। लेकिन शादी के कुछ ही समय बाद
मार्सिलस की बीमारी से मौत हो गई। ऑगस्टस का पहला वारिस चला गया था। इसके बाद उसने
जूलिया की शादी अपने सबसे करीबी दोस्त और सबसे काबिल जनरल मार्कस अग्रिप्पा से कर
दी। अग्रिपा उम्र में जूलिया से काफी ज्यादा था। लेकिन यह एक राजनीतिक शादी थी।
अग्रिप्पा और जूलिया के पांच बच्चे हुए जिनमें तीन पुत्र थे। गियस, लुसियस और अग्रिप्पा
पोस्टमस। ओगस्टस को लगा कि अब उसकी वारिस की समस्या हल हो गई है। उसने अपने दोनों
मुख्य नातियों गियस और लुसियस को गोद ले लिया और उन्हें अपना वारिस घोषित कर दिया।
वो उन्हें अपने साथ रखता था। उन्हें शासन प्रशासन की शिक्षा देता था और उन्हें
भविष्य के सम्राट के रूप में तैयार कर रहा था। लेकिन किस्मत ने एक बार फिर क्रूर
मजाक किया। पहले लुसियस सीजर की एक अभियान के दौरान बीमारी से मौत हो गई। और उसके
कुछ ही समय बाद गियस सीजर भी एक मुकाबले में घायल होने के बाद मर गया। ओगस्टसस पर
दुखों का सैलाब आ गया। जिन दो युवकों पर उसने अपना सारा भविष्य दांव पर लगाया था, वह दोनों ही उसे
त्याग कर चले गए थे। इस बीच उसकी बेटी जूलिया की जिंदगी भी बर्बाद हो रही थी।
अग्रिप्पा की मौत के बाद ओगस्टस ने जूलिया की तीसरी शादी अपनी तीसरी पत्नी लिविया
के बेटे टिबेरियस से करवा दी। यह शादी दोनों के लिए एक बुरे सपने जैसी थी। जूलिया
एक जिंदा दिल और आजाद ख्यालों की युवती थी। जबकि टिबेरियस एक गंभीर और अंतर्मुखी
इंसान था। दोनों के बीच कभी नहीं बनी। अपनी नाखुश जिंदगी से तंग आकर जूलिया ने रोम
के कई मुख्य लोगों के साथ अवैध संबंध बना लिए। जब ऑगस्टस को जो खुद को नैतिक
मूल्यों का सबसे विशाल रक्षक बताता था। अपनी ही बेटी के इन कारनामों के बारे में
पता चला तो वह गुस्से और शर्म से पागल हो गया। उसने अपनी बेटी को गिरफ्तार करवाया
और उसे एक छोटे से वीरान द्वीप पर देश निकाला दे दिया जहां वह अपनी बाकी जिंदगी
अकेलेपन में मर गई। ऑगस्टस ने उसे इतना भी माफ नहीं किया कि उसे उसकी मां की कब्र
में दफनाया जा सके। सार्वजनिक जीवन में ऑगस्टस बहुत शक्तिशाली था। लेकिन निजी जीवन
में वो एक दुखी और अकेला इंसान था। उसने अपनी जिंदगी के आखिरी साल इसी चिंता में
बिताए कि उसके बाद रोम का क्या होगा। उसके सारे चुने हुए वारिस मर चुके थे। अब
उसके पास सिर्फ एक ही विकल्प बचा था। टिबेरियस उसकी पत्नी लिविया का बेटा जिससे वह
कभी खास पसंद नहीं करता था। लेकिन मजबूरी में उसे टिबेरियस को ही अपना वारिस चुनना
आवश्यक हुआ। इन पारिवारिक त्रासदियों के अलावा ऑगस्टस की अपनी निजी आदतें भी बहुत
साधारण थी। वो जो दुनिया के सबसे अमीर साम्राज्य का मालिक था, वह एक बहुत ही
सादा जीवन जीता था। वो एक छोटे से घर में रहता था। सादे वस्त्र पहनता था और बहुत
साधारण खाना खाता था। उसे दिखावा बिल्कुल पसंद नहीं था। वो अपनी सेहत को लेकर
हमेशा चिंतित रहता था और ठंड से बचने के लिए कई परतें वस्त्रों की पहनता था। वह
लोगों को यह दिखाना चाहता था कि वह उनसे अलग नहीं है। वह उन्हीं में से एक है।
लेकिन सच तो यह था कि वह अपने सिंहासन पर बहुत अकेला था। एक ऐसा इंसान जिसने पूरी
दुनिया को जीत लिया था। लेकिन अपने ही परिवार की खुशियों को नहीं जीत पाया।
अध्याय नंबर नौ
विरासत की चिंता।
एक सम्राट का आखिरी संघर्ष। जब मौत
सामने थी और भविष्य अनिश्चित। हर कहानी का एक अंत होता है। चाहे वह कहानी किसी आम
इंसान की हो या किसी महान सम्राट की। ऑगस्टस जिसने 70 साल से भी ज्यादा समय तक रोम की राजनीति पर अपनी छाप बनाए
रखी और 40 साल से
भी ज्यादा समय तक साम्राज्य पर राज किया। अब बूढ़ा हो चला था। उसकी सेहत जो कभी
अच्छी नहीं रही, अब उसका
साथ दे रही थी। वह जानता था कि उसका अंत अब करीब है। लेकिन मौत का डर उसे उतना
नहीं सता रहा था जितना उसे अपने पीछे त्यागी जा रही विरासत की चिंता खाई जा रही
थी। उसने अपनी पूरी जिंदगी एक ही मकसद के लिए लगा दी थी। रोम में शांति और स्थिरता
कायम करना। उसने गृह युद्धों को खत्म किया। एक नया राजनीतिक सिस्टम बनाया और पैक्स
रोमाना की शुरुआत की। लेकिन अब उसे डर था कि क्या उसकी मौत के बाद यह सब कुछ बिखर
जाएगा? क्या रोम
एक बार फिर से गृह युद्धों की आग में झुलस जाएगा? यह उसकी जिंदगी का आखिरी और सबसे मुख्य संघर्ष था। एक ऐसा
संघर्ष जो वह अपने दिमाग में कर रहा था। उसकी सबसे मुख्य समस्या एक काबिल वारिस की
थी। जैसा कि हमने पिछले अध्याय में देखा किस्मत ने उसके साथ बहुत बुरा खेल खेला
था। उसके चुने हुए उत्तराधिकारी मार्सिलस,
अग्रिप्पा, गियस और
लुसियस सब एक-एक करके मौत के मुंह में समा गए थे। उसने अपनी बेटी और नातिन को भी
देश निकाला दे दिया था। अब उसके पास सिर्फ एक ही विकल्प बचा था। टिबेरियस।
टिबेरियस उसकी पत्नी लिविया का पहली शादी से हुआ बेटा था। वो एक बहुत ही काबिल और
अनुभवी जनरल था। लेकिन उसका स्वभाव बहुत रूखा, संदेही और अलोकप्रिय था। ओगस्टस उसे व्यक्तिगत रूप से पसंद
नहीं करता था। लेकिन वह यह भी जानता था कि इस वक्त रोम को संभालने के लिए टिबेरियस
से बेहतर कोई और नहीं है। बहुत ही भारी मन से ऑगस्टस ने टिबेरियस को गोद लिया और
उसे अपना उत्तराधिकारी बनाया। उसने टिबेरियस को अपनी लगभग सारी शक्तियां सौंप दी
ताकि सत्ता का हस्तांतरण बिना किसी खूनखराबे के हो सके। वो दुनिया को यह दिखाना
चाहता था कि उसने जो सिस्टम बनाया है वो किसी एक व्यक्ति पर निर्भर नहीं है। बल्कि
वो आगे भी चलता रहेगा। अपने जीवन के अंतिम दिनों में ऑगस्टस ने अपने कामों का एक
लेखाजोखा तैयार करवाया जिसे रेस गेस्टे डिवी ऑगस्टी यानी दैवीय ऑगस्टस के कार्य के
नाम से जाना जाता है। यह एक तरह से उसकी राजनीतिक आत्मकथा थी जिसमें उसने बताया था
कि उसने रोम के लिए क्या-क्या किया। उसने इसमें लिखा कि कैसे उसने सेना पर कितना
पैसा खर्च किया। कितनी इमारतें बनवाई और कैसे उसने रोम को दुश्मनों से बचाया। उसने
बड़ी चालाकी से अपनी तानाशाही शक्तियों का जिक्र नहीं किया बल्कि खुद को गणराज्य
के एक सेवक के रूप में प्रस्तुत किया। उसने आदेश दिया कि उसकी मौत के बाद इस लेख
को कांसे के स्तंभों पर खुदवाकर रोम में उसके मकबरे के सामने लगा दिया जाए ताकि
आने वाली पीढ़ियां उसके कामों को याद रखें। यह भी प्रोपेगेंडा का एक बेहतरीन
उदाहरण था जो मौत के बाद भी अपनी छवि को नियंत्रित करने की कोशिश थी। सन 14 ईस्वी में 75 साल की उम्र में
ऑगस्टस की मृत्यु हो गई। कहा जाता है कि उसके आखिरी शब्द थे। क्या मैंने अपना
किरदार अच्छे से निभाया? अगर हां
तो मेरे जाने पर तालियां बजाना। उसकी मौत के बाद सीनेट ने उसे आधिकारिक तौर पर एक
देवता घोषित कर दिया और उसकी पूजा की जाने लगी। उसका प्लान काम कर गया था।
टिबेरियस बिना किसी विरोध के अगला सम्राट बना। सत्ता का हस्तांतरण शांतिपूर्ण
तरीके से हुआ। ऑगस्टस ने जो प्रिंसिपेट नाम का सिस्टम बनाया था, वह सफल साबित
हुआ। उसने एक ऐसी व्यवस्था की नीव रखी थी जो अगले कई 100 सालों तक कायम
रही। उसने रोम को हमेशा के लिए परिवर्तित कर दिया था। वो एक ऐसा शख्स था जिसने
विरासत में अराजकता पाई और बदले में एक साम्राज्य दे गया। उसने अपनी जिंदगी में
क्रूरता भी दिखाई। अपने दुश्मनों को बेरहमी से खत्म किया। लेकिन उसने एक ऐसे युग
का निर्माण भी किया जिसे आज भी स्वर्ण युग के नाम से याद किया जाता है। उसकी कहानी
हमें सिखाती है कि महानता की कीमत अक्सर बहुत विशाल होती है। उसने शांति स्थापित
करने के लिए युद्ध किए। उसने व्यवस्था बनाने के लिए आजादी का गला घोटा और उसने
साम्राज्य को बचाने के लिए अपने परिवार को कुर्बान कर दिया। अब सवाल यह उठता है कि
हम उसे किस रूप में याद रखें?
एक नायक के रूप में जिसने रोम को बचाया या एक चतुर तानाशाह के रूप में जिसने
गणराज्य की हत्या कर दी।
अध्याय नंबर 10
एक युग का अंत एक
विरासत की शुरुआत।
ऑगस्टस की कहानी से हम आज क्या सीख
सकते हैं? यह थी
कहानी गियस ऑक्टवियन की जो बाद में ऑगस्टस सीजर के नाम से जाना गया। एक ऐसे युवक
की कहानी जिसने अपनी कमजोरियों को अपनी ताकत बनाया जिसने अपने दुश्मनों को अपनी
चालाकी से मात दी और जिसने एक बिखरते हुए गणराज्य को दुनिया के सबसे महान
साम्राज्यों में से एक में बदल दिया। जब हम ऑगस्टस की जिंदगी को देखते हैं तो हमें
नायक और खलनायक के बीच की एक धुंधली रेखा दिखाई देती है। वो एक शांतिदूत था। लेकिन
यह शांति उसने हजारों लोगों के खून से खरीदी थी। वो खुद को गणराज्य का रक्षक कहता
था। लेकिन असल में उसने ही गणराज्य की आत्मा को खत्म कर दिया था। तो उसकी असली
विरासत क्या है? और हम जो
21वीं सदी में जी
रहे हैं उसकी कहानी से क्या सीख सकते हैं?
पहली और सबसे अहम सीख जो हमें ऑगस्टस से मिलती है वो है दूरदर्शिता और धैर्य
की। जब जूलियस सीजर की हत्या हुई तो ऑक्टेवियन सिर्फ 18 साल का था। उसके
चारों तरफ उससे ज्यादा ताकतवर और अनुभवी लोग थे। लेकिन उसने जल्दबाजी नहीं की।
उसने सही मौके का इंतजार किया। उसने मार्क एंटनी से सीधे मुकाबला करने के बजाय
पहले जनता और सीनेट का समर्थन हासिल किया। उसने अपने दुश्मनों को आपस में संघर्ष
करवाया और खुद को मजबूत किया। यह हमें सिखाता है कि जीवन में विशाल सफलता हासिल
करने के लिए सिर्फ ताकत ही नहीं बल्कि सही रणनीति और धैर्य का होना भी बहुत जरूरी
है। कभी-कभी पीछे हटना आगे एक लंबी छलांग लगाने की तैयारी होती है। दूसरी सीख है
छवि और प्रचार की ताकत। ऑगस्टस को शायद इतिहास का सबसे महान प्रोपेगेंडा मास्टर
कहा जा सकता है। वह जानता था कि लोगों की सोच को कैसे नियंत्रित किया जाता है।
उसने खुद को हमेशा एक साधारण मेहनती और धर्म परायण रोमन के रूप में पेश किया। जबकि
उसका दुश्मन मार्क एंटनी एक विदेशी रानी के प्यार में डूबा हुआ अय्याश था। उसने
इमारतों, सिक्कों, मूर्तियों और
साहित्य का इस्तेमाल अपनी एक महान छवि गढ़ने के लिए किया। वह खुद को सम्राट नहीं
बल्कि पहला नागरिक कहता था। यह हमें बताता है कि आप जो हैं वह उतना महत्वपूर्ण
नहीं है जितना कि लोग आपको क्या समझते हैं।




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