NCERT Class 12 History इतिहास (हरियाणा बोर्ड) अध्याय 9. उपनिवेशवाद और देहात Solutions

 अध्याय 9. उपनिवेशवाद और देहात Solutions 


लघु प्रश्न उत्तर 

प्रश्न 1 फ्रांसिस बुकानन कौन था?
उत्तर- यह एक चिकित्सक था जो बंगाल चिकित्सा सेवा में रहा था।

प्रश्न 2 पहाडियाँ लोगों का कृषि उपकरण कौन-सा था ?
उत्तर- कुदाल।

प्रश्न 3. पहाड़ियाँ लोग कहाँ रहते थे?
उत्तर- राजमहल की पहाड़ियों के आस-पास।

प्रश्न 4 . पहाड़ियाँ लोग अपनी जीविका के लिए कौन-सी खेती करते थे ?
उत्तर- शुम कृषि।

प्रश्न 5. तामिन-ए-कोह की स्थापना कब की गई थी?
उत्तर- 1832 ई. में।

प्रश्न 6. संथालों का कृषि उपकरण कौन-सा था?
उत्तर- हल।

प्रश्न 7. संथालों ने अग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह कब किया था?
उत्तर- 1855-56 ई में।

प्रश्न 8. अमेरिकन गृहयुद्ध कब शुरू हुआ था ?
उत्तर- 1861 ई. में।

प्रश्न 9. अमेरिकन गृहयुद्ध कब समाप्त हुआ था?
उत्तर- 1865 ई. में।

प्रश्न 10. इस्तमरारी या स्थाई बंदोबस्त के समय बर्ववान का राजा कौन था?
उत्तर- तेजचंद।

प्रश्न 11. विश्व में आर्थिक मंदी कब आई थी?
उत्तर- 1929 ई. में।

प्रश्न 12. संथाल परगने की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर- 1856 ई में।

प्रश्न 13 ब्रिटेन में 'कपास आपूर्ति संघ' की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर 1857 ई. में।

प्रश्न 14. रैयतवाड़ी व्यवस्था कितने प्रतिशत भूमि पर लागू हुई थी?
उत्तर- 51 प्रतिशत।
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प्रश्न 1. पहाड़ियाँ लोग कौन थे?
उत्तर- राजमहल की पहाड़ियों के इर्द-गिर्द रहने वाले लोगों को पहाड़ि‌याँ कहा जाता था। ये अपनी आजीविका जंगली उत्पादों से चलाते थे। ये कुदाल के प्रयोग से झूम कृषि करते थे।

प्रश्न 2. फ्रासिस बुकानन कौन था?
उत्तर- वह लार्ड वेलेज्ली का सरकारी चिकित्सक था। उसने ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकार क्षेत्र में आने वाली भूमि का विस्तृत सर्वेक्षण किया था। उसने कलकत्ता में अलीपुर चिड़ियाघर की स्थापना की थी।

प्रश्न 3. 1859 ई. का परिसीमन कानून क्या था?
उत्तर- किसान ऋणदाताओं के द्वारा खातों में धोखाधड़ी की शिकायत लगातार सरकार से कर रहे थे। इसलिए ऋणदाताओं पर नियन्त्रण करने के लिए सरकार ने 1859 ई. में एक परिसीमन कानून पारित किया जिसमें ऋणदाता और रैयत के बीच हस्ताक्षरित ऋणपत्र केवल तीन वर्षों के लिए ही मान्य होंगे। इस बहुत समय तक ब्याज को संचित होने से रोकना था। यह कहा गया कि कानून का उद्देश्य

प्रश्न 4. रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या थी? इसे कब और कहाँ लागू किया गया था?
उत्तर- रैयतवाड़ी व्यवस्था एक भूमि कर प्रणाली थी। इस व्यवस्था में कंपनी सीधे किसान से भू-राजस्व वसूल करती थी। यह व्यवस्था टामस मुनरो ने 1820 ई. में बंबई, असम तथा मद्रास में लागू की। इसके अन्तर्गत औपनिवेशिक भारत का 51% भाग था।

प्रश्न 5. औपनिवेशिक शासन के समय कौन-कौन सी भू-राजस्व नीतियाँ लागू की गई थी?
उत्तर- (i) स्थाई बंदोबस्त या इस्तमरारी बंदोबस्त-बंगाल में
(ii) रैयतवाड़ी व्यवस्था-मुंबई दक्कन तथा मद्रास में
(iii) महालवाड़ी व्यवस्था-पंजाब में।

प्रश्न 6. स्थाई बंदोबस्त के वो लाभ बताइए।
उत्तर-(i) कंपनी की आय निश्चित हो गई। जमींदारों को निश्चित समय पर तय भू-राजस्व जमा कराना होता था। (ii) कंपनी को जमींदार के रूप में एक वफादार वर्ग मिल गया जो मुसीबत के समय कंपनी की सहायता के लिए तैयार रहता था।

प्रश्न 7. हल और कुदाल के बीच लड़ाई क्या थी?
उत्तर-हल और कुदाल के बीच लड़ाई संथाल और पहाड़ि‌याँ लोगों के बीच संधर्ष था। संथालों का कृषि उपकरण हल था जबकि पहाड़ियाँ लोगों का कृषि उपकरण कुदाल था। हल और कुदाल प्रतीकात्मक शब्द थे।

प्रश्न 8. पाँचवी रिपोर्ट क्या थी?
उत्तर भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासन और क्रियाकलापों के विषय में जो रिपोर्ट तैयार की गई उसे पाँचवी रिपोर्ट कहा जाता है। यह 1813 ई. में ब्रिटिश संसद में पेश की गई थी। उपरोक्त विषय के सन्दर्भ में इससे पहले चार रिपोर्ट पहले भी पेश की जा चुकी थी जो इतनी महत्वपूर्ण नहीं थी। पाँचवे स्थान पर होने के कारण इसे पाँचवी रिपोर्ट कहा जाता है। इस रिपोर्ट में 1002 पृष्ठ थे।

प्रश्न 9. पहाड़ियाँ लोगों ने बाहरी लोगों के आगमन पर कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त की?
उत्तर- पहाड़ियाँ लोग बाहरी लोगों को संदेह तथा अविश्वास की नजर से देखते थे। अतः जब संथाल लोगों को राजमहल की पहाड़ियों में बसाया गया तो पहाड़ि‌यों ने इसका विरोध किया था।

प्रश्न 10. स्थाई बंदोबस्त लागू करने के पीछे ईस्ट इंडिया कंपनी के क्या उद्देश्य थे ?
उत्तर- 
(i) कंपनी अपनी आय निश्चित करना चाहती थी। इसलिए उसने यह बंदोबस्त लागू किया। 
(ii) कंपनी भारत में एक वफादार वर्ग चाहती थी जो उसे जमींदार के रूप में प्राप्त हो सकता था।

प्रश्न 11. दामिन-ए-कोह की स्थापना का क्या परिणाम निकला था?
उत्तर- संथालों को दी जाने वाली भूमि के अनुदान-पत्र में यह शर्त थी कि उनको दी गई भूमि के कम से कम दसवें भाग को साफ करके पहले दस वर्षों के भीतर जोतना था। इस भूमि की खंबे गाड़कर इसकी परिसीमा निर्धारित कर दी गई और इसे मैदानी इलाके के स्थायी कृषकों की दुनिया से और पहाड़ियाँ लोगों को पहाड़ियों से अलग कर दिया गया।
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प्रश्न 1. दामिन-ए-कोह से क्या अभिप्राय है?
उत्तर- संथालों को ब्रिटिश सरकार द्वारा जमीनें देकर राजमहल की तलहटी में बसने के लिए तैयार कर लिया। 1832 तक, जमीन के एक काफ़ी बड़े इलाके में संथालों को बसाकर, इसे संथालों की भूमि घोषित कर दिया गया। इसे ही दामिन-ए-कोह कहा जाता है। इस सीमांकित भूमि पर संथालों को हल चलाकर खेती करनी थी और स्थायो किसान बनना था।

प्रश्न 2. पहाड़ियाँ लोगों द्वारा अपनाई गई झूम खेती क्या थी?
अथवा
पहाड़ियाँ लोगों द्वारा अपनाई गई झूम खेती की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर - पहाड़ियाँ लोग कुदाल का प्रयोग करके जंगल के छोटे से हिस्से में झाड़ियों को काटकर और घास-फूस को जलाकर जमीन साफ कर लेते थे और राख की पोटाश से उपजाऊ बनी जमीन पर अपने खाने के लिए दालें और ज्वार-बाजरा उगाते थे। वे कुछ समय के लिए इस साफ की गई भूमि पर कृषि करते थे और फिर उसे कुछ वर्षा के लिए खाली छोड़ देते थे तथा नए इलाकों में चले जाते जिससे जमीन की खोई हुई उर्वरता फिर से उत्पन्न हो जाती थी। इसे ही झूम खेती कहते थे।

प्रश्न 3. रैयतवाड़ी व्यवस्था क्या थी? यह व्यवस्था कब और कहाँ अपनाई गई?
उत्तर - स्थायी बंदोबस्त के दुष्परिणामों को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने भू-राजस्व वसूल करने के लिए एक नयी व्यवस्था लागू की। इस व्यवस्था में भूमिकर समझौता सरकार ने सीधे तौर पर किसान के साथ किया। यह व्यवस्था बंबई, असम और मद्रास में टामस मुनरों द्वारा 1820 ई. में लागू की गई। इसके अन्तर्गत औपनिवेशिक भारत का 51 प्रतिशत भाग था।

प्रश्न 4. जमींदारों पर नियन्त्रण के उद्देश्य से कंपनी ने कौन-कौन से कदम उठाए?
उत्तर- ईस्ट इंडिया कंपनी जमींदारों को पूरा महत्त्व देती थी परन्तु फिर भी वह उनकी सत्ता और स्वायत्तता को नियंत्रित करना चाहती थी जिसके लिए कंपनी ने निम्न कदम उठाए-
(1) जमींदारों की सैन्य टुकड़ियों को समाप्त कर दिया गया।
(ii) उनकी न्यायिक शक्तियाँ छीन ली गई।
(iii) उनके द्वारा लिया जाने वाला सीमा शुल्क समाप्त कर दिया।
(iv) उनसे स्थानीय पुलिस व्यवस्था करने की शक्ति छीन ली गई।


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जोतदारों का उदय 
अठारहवीं शताब्दी के अंत में जहाँ एक ओर अनेक ज़मींदार संकट की स्थिति से गुजर रहे थे, वहीं दूसरी ओर धनी किसानों के कुछ समूह गाँवों में अपनी स्थिति मज़बूत करते जा रहे थे। फ्रांसिस बुकानन के उत्तरी बंगाल के दिनाजपुर जिले के सर्वेक्षण में हमें धनी किसानों के इस वर्ग का, जिन्हें 'जोतदार ” कहा जाता था, विशद्‌ विवरण देखने को मिलता है। उन्नीसवीं शताब्दी के प्रारंभिक वर्षों तक आते-आते, जोतदारों ने ज़मीन के बड़े-बड़े रकबे, जो कभी-कभी तो कई हज़ार एकड़ में फैले थे, अर्जित कर लिए थे। स्थानीय व्यापार और साहूकार के कारोबार पर भी उनका नियंत्रण था। 


प्रश्न 1 जोतदार कौन थे ?
प्रश्न 2 दिनाजपुर में भूमि सर्वेक्षण का कार्य किसने किया ?
प्रश्न 3. ग्रामीण बंगाल में स्थानीय व्यापार और साहूकारों के कारोबार पर किसका नियन्त्रण था?
प्रश्न 4. अठारहवीं शताब्दी के अन्त में कौन संकट की स्थिति से गुज़र रहे थे?


1. ग्रामीण बंगाल में धनी किसानों की जोतदार कहा जाता था।
2. फ्रांसिस बुकानन ने।
3. जोतदारों का 
4. जमींदार



दिनाजपुर के जोतदार
बुकानन ने बताया है कि उत्तरी बंगाल के दिनाजपुर जिले के जोतदार किस प्रकार ज़मींदार के अनुशासन का प्रतिरोध और उसकी शक्ति की अवहेलना किया करते थे :
भूस्वामी इस वर्ग के लोगों को पसंद नहीं करते थे, लेकिन यह स्पष्ट है कि इन लोगों का होना बहुत जरूरी था क्योंकि इनके बिना, ज़रूरतमंद काश्तकारों को पैसा उधार कौन देता...
जोतदार, जो बड़ी-बड़ी ज़मीनें जोतते हैं, बहुत ही हठीले और जिद्दी हैं और यह जानते हैं कि जमींदारों का उन पर कोई वश नहीं चलता। वे तो अपने राजस्व के रूप में कुछ थोड़े से रुपये ही दे देते हैं और लगभग हर किस्त में कुछ-न-कुछ बकाया रक़म रह जाती है। उनके पास उनके पट्टे की हकदारी से ज़्यादा ज़मीनें हैं। ज़मींदार की रक़म के कारण, अगर अधिकारी उन्हें कचहरी में बुलाते थे और उन्हें डराने-धमकाने के लिए घंटे-दो-घंटे कचहरी में रोक लेते हैं तो वे तुरंत उनकी शिकायत करने के लिए फ़ौजदारी थाना (पुलिस थाना) या मुन्सिफ की कचहरी में पहुँच जाते हैं और कहते हैं कि ज़मींदार के कारिंदों ने उनका अपमान किया है। इस प्रकार राजस्व की बकाया रक़मों के मामलें बढ़ते जाते हैं और जोतदार छोटे-छोटे रैयत को राजस्व न देने के लिए भड़काते रहते हैं...

प्रश्नः
1. बुकानन के विषय में आप क्या जानते हो?
2. जोतवार कौन थे?
3. जोतदार जमींदारों की सत्ता का किस प्रकार प्रतिरोध किया करते थे?



उत्तर-
1. फ्रासिस बुकानन एक चिकित्सक था जो बंगाल चिकित्सा सेवा में 1794 ई० से 1815 ई० तक रहा था।
2. जोतदार ग्रामीण बंगाल में संपन्न किसानों के समूह थे। ये गाँव में जमीनों के वास्तविक मालिक थे तथा साहूकार की भूमिका भी निभाते थे।
3. जोतदार छोटे-छोटे किसानों को राजस्व न देने के लिए भड़काते रहते थे ताकि जमींदार के अधिकारी समय पर गाँव से लगान एकत्रित न कर पाए। इसके परिणामस्वरूप जमींदार की जमींदारी अधिकतर नीलाम हो जाती थी।



16 मई 1875 को पूना के जिला मजिस्ट्रेट ने पुलिस कमिश्नर को लिखा: शनिवार 15 मई को सूपा पहुंचने पर मुझे इस दंगे के बारे में पता चला। एक साहूकार का घर पूरी तरह जलकर खाक हो गया; करीब एक दर्जन घरों में तोड़फोड़ की गई और अंदर मौजूद सारा सामान आग के हवाले कर दिया गया। खाता-बही, बांड, अनाज, देशी कपड़ा सड़कों पर लाकर जला दिया गया, जहां राख के ढेर आज भी देखे जा सकते हैं। हेड कांस्टेबल ने 50 लोगों को गिरफ्तार किया। करीब 2000 रुपये का चोरी का सामान बरामद किया गया। अनुमानित नुकसान 25,000 रुपये से अधिक था। साहूकारों का दावा है कि नुकसान एक लाख रुपये से अधिक का है।
दक्कन दंगा आयोग.

प्रश्नः
1. सूपा कहाँ पर स्थित है? यह किसलिए प्रसिद्ध था?
2. सूपा में विद्रोह कब और किसने किया था?
3. 'साहूकार' शब्द का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
4. किसानों ने साहूकारों के विरुद्ध क्या-क्या तरीके अपनाए?




उत्तर-
1. सूपा आधुनिक पुणे (महाराष्ट्र) जिले का एक बड़ा गाँव है। यह एक विपणन केंद्र (मंडी) था।

2. सूपा में 12 मई 1875 को किसानों ने विद्रोह किया था।

3. साहूकार ऐसा व्यक्ति होता था जो पैसा उधार देता था और साथ ही व्यापार भी करता था।

4. किसानों ने साहूकारों के मकान जला दिए तथा खातें पत्र एवं बांड जला दिए।



भाड़ा-पत्र
जब किसान पर ऋण का भार बहुत बढ़ गया तो वह ऋणदाता का ऋण चुकाने में असमर्थ हो गया। अब ऋणदाता के पास अपना सर्वस्व जमीन, गाड़ियाँ, पशुधन देने के अलावा कोई चारा नहीं था। लेकिन पशुओं के बिना वह आगे खेती कैसे कर सकता था। इसलिए उसने जमीन और पशु भाड़े पर ले लिए। अब उसे उन पशुओं के लिए, जो मूल रूप से उसके अपने ही थे. भाड़ा चुकाना पड़ता था। उसे एक भाड़ा-पत्र (किरायानामा) लिखना पड़ता था जिसमें यह साफतौर पर कहा जाता था कि ये पशु और गाड़ियाँ उसकी अपनी नहीं हैं। विवाद छिड़ने पर, ये दस्तावेज न्यायालयों में मान्य होते थे। नीचे एक ऐसे ही दस्तावेज का नमूना दिया गया है जो नवंबर 1873 में एक किसान ने हस्ताक्षरित किया था (यह दक्कन दंगा आयोग के अभिलेखों से उधृत है।)
:
मैने आपको देय ऋण के खाते में, आपको अपनी लोहे के धुरों वाली दो गाड़ियाँ, साज-समान और चार बैलों के साथ बेची हैं... मैंने इस दस्तावेज के तहत उन्हीं दो गाड़ियों और चार बैलों को आपसे भाड़े पर लिया है। मैं हर माह आपको चार रुपए प्रतिमाह की दर से उनका किराया (भाड़ा) दूँगा और आपसे आपकी अपनी लिखावट में रसीद प्राप्त करूँगा। रसीद न मिलने पर मैं यह दलील नहीं दूँगा कि किराया नहीं चुकाया गया है।


प्रश्नः
1. भाड़ा-पत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
2. किसान की ऋण चुकाने की असमर्थता का क्या परिणाम निकलता था?
3. उन सभी वचनबद्धताओं की सूची बनाइए जो किसान इस दस्तावेज में दे रहा है।
4. उपरोक्त अनुच्छेद में ऋणदाता की कैसी छवि उभर कर सामने आती है?








उत्तर-
1. भाड़ा-पत्र को किरायानामा भी कहा जाता है। इस पत्र के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी वस्तु को भाड़े पर लेता था तो उसे साफतौर पर लिखना पड़ता था कि यह उसकी अपनी नहीं है।

2. उसे अपना सभी कुछ जैसे जमीन, गाड़ियाँ, पशुधन ऋणदाता को देना पड़ता था।

3. (i) किसान को ऋणग्रस्तता के कारण अपने ही पशु और जमीन को भाड़े पर लेना पड़ता था तथा एक भाड़ा-पत्र भी लिखना पड़ता था।
(ii) किसान दस्तावेज में लिखता है कि गाड़ियों और बैलों का हर माह ऋणदाता को चार रुपए प्रतिमाह की दर से किराया दूँगा।

4. निर्दयी और अत्याचारी की।




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