रोमन साम्राज्य का विस्तार
रोम साम्राज्य दूर-दूर तक फेला हुआ था। इसके विशाल राज्य क्षेत्र में आज का अधिकाशत् यूरोप ओर उर्वर अद्ध॑चद्राकार क्षेत्र यानि पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका का बहुत बड़ा हिस्सा शामिल था जिसमें भूमध्यसागरीय क्षेत्र इसका केंद्र था. इसके विस्तार में आधुनिक इटली, स्पेन, फ्रांस (गॉल), ब्रिटेन का दक्षिणी भाग, जर्मनी के कुछ हिस्से, मध्य पूर्व (सीरिया, इराक, इजरायल), मिस्र और उत्तरी अफ्रीका के क्षेत्र शामिल थे।
रोमन इतिहास की जानकारी के प्रमुख स्रोत
इतिहासकारों के पास स्रोत सामग्री का विशाल भंडार था इसे 3 वर्गों में विभाजित किया जा सकता है।
रोम के इतिहास की स्त्रोत - सामग्री
- समकालीन शक्तियों द्वारा लिखित इतिहास (वर्ष-वृतांत)
- पत्र व्याख्यान, प्रवचन, कानून
- अभिलेख
- पैपाइरस पेड़ के पत्तों पर लिखि पाण्डुलिपियां
- इमारतें,स्मारक
- मिट्टी के बर्तन, पच्चीकारी का सामान
ईसा मसीह के जन्म से लेकर सातवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में 630 के दशक तक की अवधि में अधिकांश यूरोप, उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व तक के विशाल क्षेत्र में दो सशक्त साम्राज्यों का शासन था। ये दो साम्राज्य रोम और ईरान के थे। इन दो महान शक्तियों ने दुनिया के उस अधिकांश भाग को आपस में बाँट रखा था जिसे चीनी लोग (ता-चिन बृहत्तर चीन या मोटे तौर पर पश्चिम) कहा करते थे।
साम्राज्य का आरम्भिक काल
रोमन साम्राज्य सांस्कृतिक दृष्टि से ईरान की तुलना में कही अधिक विविधतापूर्ण था।
रोमन साम्राज्य ऐसे क्षेत्रों तथा संस्कृतियों का मिला जुला रूप था जो कि मुख्यतः सरकार की एक साझी प्रणाली द्वारा एक-दूसरे के साथ जुड़े हुए थे।
साम्राज्य में रहने वाले सभी लोग सम्राट की ही प्रजा थे।
प्रशासन में लातिनी तथा यूनानी भाषा का प्रयोग ।
सैनेट
सैनेट ऐसी संस्था थी जिसने उन दिनों में जब रोम एक रिपब्लिक यानी गणतंत्र था , सत्ता पर अपना नियंत्रण रखा था रोम में सैनेट संस्था का अस्तित्व कई शताब्दियों तक रहा।
सेनेट की सदस्यता जीवन भर चलती थी उसके लिए जन्म की अपेक्षा धन और पद प्रतिष्ठा को ज्यादा महत्व दिया जाता था।
सैनेट एक ऐसी संस्था थी जिसमें कुलीन और अभिजात वर्ग यानी रोम के धनी परिवारों का प्रतिनिधित्व था लेकिन आगे चलकर इसमें इतावली मूल के जमीदारों को भी शामिल किया गया।
रोम के इतिहास की ज्यादा पुस्तकें यूनानी और लातिनी में इन्हीं ने लिखी थी सम्राट की परख इस बात से की जाती थी कि वह सैनेट के प्रति किस तरह का व्यवहार रखते हैं।
उन सम्राट को सबसे बुरा शासक माना जाता था जो सैनेट के सदस्यों के प्रति शत्रुतापूर्ण व्यवहार रखते थे या उनके साथ हिंसा करते थे।
कुछ सैनेटर गणतंत्र युग में लौटने के लिए तरसते थे लेकिन अधिकतर सैनेटर यह जान चुके थे कि अब ऐसा हो पाना असंभव था।
सेना
सम्राट और सेनेट के बाद साम्राज्य में एक मुख्य संस्था सेना थी रोम में एक व्यवसायिक सेना थी जिसमें प्रत्येक सैनिक को वेतन दिया जाता था और न्यूनतम 25 वर्ष तक सेवा करनी पड़ती थी।
एक वेतनभोगी सेना का होना रोमन साम्राज्य के अपनी खास विशेषता थी सेना में चौथी शताब्दी तक 6,00,000 सैनिक थे और उसके पास निश्चित रूप से सम्राटों का भाग्य निर्धारित करने की शक्ति थी।
सैनिक बेहतर सेवा और वेतन के लिए लगातार आंदोलन करते रहते थे यदि सैनिक अपने सेनापतियों और यहां तक कि सम्राट द्वारा निराश महसूस करते थे तो यह आंदोलन सैनिक विद्रोह को रूप ले लेता था।
सैनेट सेना से घृणा करती थी और उससे डरती थी क्योंकि वह हिंसा का स्रोत थी जब सरकार को अपने बढ़ते हुए सैन्य खर्चो को पूरा करने के लिए भारी कर ( tax ) लगाने पड़े थे तब तनावपूर्ण परिस्थिति सामने आई थी।
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