"यायावर साम्राज्य"
- यायावर लोग मूलतः घुमक्कड़ होते हैं ।
- मध्य एशिया के मंगोलों ने चंगेज खान के नेतृत्व में तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी पार महाद्वीपीय साम्राज्य की स्थापना की
- इनका साम्राज्य यूरोप और एशिया महाद्वीप तक फैला हुआ था
- एक भयानक सैनिक तंत्र और शासन संचालन की प्रभावी पद्धतियों का सूत्रपात किया ।
यायावार समाज के बारे में जानकारी के स्रोत
स्टेपी निवासियों ने आमतौर पर अपना कोई साहित्य नहीं रचा।
- यात्रा वृतांत
- इतिवृत्त
- नगरीय साहित्यकारों की रचनाएँ
- चीनी भाषाओं में प्राप्त स्रोत
- मंगोल भाषाओं में प्राप्त स्रोत
- अरबी भाषाओं में प्राप्त स्रोत
बर्बर
बर्बर (अंग्रेजी में बारबेरियन) शब्द यूनानी भाषा के बारबरोस (Barbaros) शब्द से उत्पन्न हुआ है, जिसका आशय गैर-यूनानी लोगों से है जिनकी भाषा यूनानियों को बेतरतीब कोलाहल ‘बर-बर’ के समान लगती थी। यूनानी ग्रन्थों में बर्बरों को बच्चों के समान दिखाया गया है जो सुचारू रूप से बोलने या सोचने में असमर्थ, डरपोक, विलासप्रिय, निष्ठुर, आलसी, लालची और स्वशासन चलाने में असमर्थ थे।
मंगोलों की भौगोलिक स्थिति :
तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभिक दशकों में यूरो-एशियाई महाद्वीप के महान साम्राज्यों ने मध्य-एशिया के स्टेपी-प्रदेश में एक नयी राजनैतिक शक्ति के अभ्युदय के एक बड़े खतरे का अनुभव किया। चंगेज़ खान (मृत्यु 1227) ने मंगोलों को संगठित किया। पर चंगेज़् खान की राजनैतिक दूरदर्शिता मध्य-एशिया के स्टेपी-प्रदेश, मंगोल जातियों का एक महासंघ मात्रा बनाने से कहीं अधिक दूरगामी थी। उसे ईश्वर से विश्व पर शासन करने का आदेश प्राप्त था। यद्यपि उसका अपना जीवन मंगोल जातियों पर कब्जा जमाने में और साम्राज्य संलग्न क्षेत्र जैसे उत्तरी चीन, तुरान ( ट्राँसओक्सिआना) अफगानिस्तान, पूर्वी ईरान, रूसी स्टेपी प्रदेशों के विरुद्ध ( युद्ध -अभियानों के नेतृत्व और प्रत्यक्ष
संचालन में बीता तथापि उसके वंशजों ने इस क्षेत्रों से और आगे जाकर चंगेज़ खान के स्वप्न को सार्थक किया एवं दुनिया के सबसे विशाल साम्राज्य का निर्माण किया।
मंगोल विविध् जनसमुदाय का एक निकाय था। ये लोग पूर्व में तातार, खितान और मंचू लोगों से और पश्चिम में तुर्की कबीलों से भाषागत समानता होने के कारण परस्पर सम्बद्ध थे। कुछ मंगोल पशुपालक थे और कुछ शिकारी संग्राहक थे।
पशुपालक
- घोड़ों, भेड़ों और कुछ हद तक अन्य पशुओं जैसे बकरी और ऊँटों को भी पालते थे।
उनका यायावरीकरण मध्यएशिया की चारण भूमि स्टेपीज में हुआ जोकि आज के आधुनिक मंगोलिया राज्य का भू-भाग है। इस क्षेत्र का परिदृश्य आज जैसा ही अत्यंत मनोरम था और क्षितिज अत्यंत विस्तृत और लहरिया मैदानों से घिरा था जिसके पश्चिमी भाग में अल्ताई पहाड़ों की बर्फीली चोटियाँ थीं। दक्षिण भाग में शुष्क गोबी का मरुस्थल इसके उत्तर और पश्चिम क्षेत्रा में ओनोन और सेलेंगा जैसी नदियों और बर्फीली पहाड़ियों से निकले सैकड़ों झरनों के पानी से सिंचित हो रहा था। पशुचारण के लिए यहाँ पर अनेक हरी घास वेफ मैदान और प्रचुर मात्रा में छोटे-मोटे शिकार अनुकूल परिस्थितियों में उपलब्ध जाते थे। शिकारी-संग्राहक लोग, पशुपालक कबीलों के आवास-क्षेत्र के उत्तर में साइबेरियाई वनों में रहते थे।
मंगोलों की सामाजिक पृष्ठभूमि मुख्य रूप से जनजातीय और खानाबदोश चरवाहा संस्कृति पर आधारित थी, जो अपने जानवरों की देखभाल और चरागाहों पर निर्भर थे। उनका समाज वंश और कुल पर आधारित था, जिसमें वर्ग व्यवस्था नहीं थी, बल्कि पारिवारिक और जनजातीय बंधनों का महत्व था। राजनीतिक रूप से, वे छोटे जनजातीय समूहों में संगठित थे, जिनमें से प्रत्येक का एक नेता या खान होता था, और अक्सर आपस में संघर्ष करते थे।
वे पशुपालक लोगों की तुलना में अधिक गरीब होते थे और ग्रीष्म काल में पकड़े गए जानवरों की खाल के व्यापार से अपना जीविकोपार्जन करते थे। इस पूरे क्षेत्र के अधिकतम और न्यूनतम तापमान में बहुत अंतर पाया जाता था : कठोर और लंबे शीत के मौसम के बाद अल्पकालीन और शुष्क गर्मियों की अवधि आती थी। चारण क्षेत्र में साल की सीमित अवधियों में ही कृषि करना संभव था पंरतु मंगोलों ने (अपने पश्चिम के तुर्कों के विपरीत) कृषि कार्य को नहीं अपनाया। न ही पशुपालकों और न ही शिकारी संग्राहकों की अर्थव्यवस्था घने आबादी वाले क्षेत्रों का भरण पोषण करने में समर्थ थी। परिणामस्वरूप इन क्षेत्रों में कोई नगर नहीं उभर पाए। मंगोल तंबुओं और जरों (gers) में निवास करते थे ओर अपने पशुधन के साथ शीतकालीन निवास स्थल से ग्रीष्मकालीन चारण भूमि की ओर चले जाते थे।
नृजातीय और भाषायी संबंधों ने मंगोल लोगों को परस्पर जोड़ रखा था, पर उपलब्ध आर्थिक संसाधनों में कमी होने के कारण उनका समाज अनेक पितृपक्षीय वंशों में विभाजित था।
धनी-परिवार विशाल होते थे, उनके पास अधिक संख्या में पशु और चारण भूमि होती थी। इस कारण उनके अनेक अनुयायी होते थे और स्थानीय राजनीति में उनका अधिक दबदबा होता था।
समय-समय पर आने वाली प्राकृतिक आपदाएँ जेसे भीषण शीत-ऋतु के दौरान एकत्रित की गई शिकार-सामग्रियाँ और अन्य भंडार में रखी हुई सामग्रियाँ समाप्त हो जाने की स्थिति में अथवा वर्षा न होने पर घास के मैदानों के सूख जाने पर उन्हें चरागाहों की खोज में भटकना पड़ता था। इस दौरान उनमें संघर्ष होता था। पशुधन को प्राप्त करने के लिए वे लूटपाट भी करते थे। प्राय: परिवारों के समूह आक्रमण करने और अपनी रक्षा करने हेतु अधिक शक्तिशाली और संपन्न कुलों से मित्रता कर लेते थे और परिसंघ बना लेते थे।
कुछ अपवादों को छोड़कर ऐसे परिसंघ प्राय: बहुत छोटे और अल्पकालिक होते थे। मंगोल और तुर्का कबीलों को मिलाकर चंगेज़ खान द्वारा बनाया गया परिसंघ पाँचवीं शताब्दी के अट्टीला (मृत्यु 453 ई.) द्वारा बनाए गए परिसंघ के बराबर था।
अट्टीला के बनाए परिसंघ के विपरीत चंगेज़ खान की राजनीतिक व्यवस्था बहुत अधिक स्थायी रही और अपने संस्थापक की मृत्यु के बाद भी कायम रही। यह व्यवस्था इतनी स्थायी थी कि चीन, ईरान और पूर्वी यूरोपीय देशों की उन्नत शस्त्रों से लैस विशाल सेनाओं का मुकाबला करने में सक्षम थी। मंगोलों ने इन क्षेत्रों में नियंत्रण स्थापित करने के साथ ही साथ जटिल कृषि-अर्थव्यवस्थाएँ एवं, नगरीय आवासों - स्थानबद्ध समाजों (sedentary societies) का बडी
कुशलता से प्रशासन किया। मंगोलों के अपने सामाजिक अनुभव और रहने के तौर-तरीके इनसे बिलकुल ही भिन्न थे।
यद्यपि यायावरी सामाजिक और राजनीतिक सगठन कृषि अर्थव्यवस्थाओं से बहुत भिन्न थे, पर ये दोनों समाज एक दूसरे की व्यवस्था से अनभिज्ञ नहीं थे। वास्तव में स्टेपी क्षेत्र में संसाधनों की कमी के कारण मंगोलों और मध्य-एशिया के यायावरों को व्यापार और वस्तु-विनिमय के लिए उनके पड़ोसी चीन के स्थायी निवासियों के पास जाना पड़ता था। यह व्यवस्था दोनों पक्षों के लिए लाभकारी थी।
यायावर कबीले खेती से प्राप्त उत्पादों ओर लोहे के उपकरणों को चीन से लाते थे और घोडे, फ़र और स्टेपी में पकड़े गए शिकार का विनिमय करते थे।
उन्हें वाणिज्यिक क्रियाकलापों में काफी तनाव का सामना करना पड़ता था क्योंकि दोनों पक्ष अधिक लाभ प्राप्त करने की होड में बेधड़क सैनिक कार्यवाही भी कर बैठते थे। जब मंगोल कबीलों के लोग साथ मिलकर व्यापार करते थे तो वे अपने चीनी पड़ोसियों को व्यापार में बेहतर शर्तें रखने के लिए मजबूर कर देते थे। कभी-कभी ये लोग व्यापारिक संबंधों को नकार कर केवल लूटपाट करने लगते थे। मंगोलों का जीवन अस्त-व्यस्त होने पर ही इन संबंधों में बदलाव आता था। ऐसी स्थिति में चीनी लोग अपने प्रभाव का प्रयोग, स्टेपी-क्षेत्र में बड़े आत्मविश्वास से करते थे। इन सीमावर्ती झड़पों से
स्थायी समाज कमज़ोर पड़ने लगे। उन्होंने कृषि को अव्यवस्थित कर दिया और नगरों को लूटा। दूसरी ओर यायावर, लूटपाट कर संघर्ष क्षेत्र से दूर भाग जाते थे जिससे उन्हें बहुत कम हानि होती थी। अपने संपूर्ण इतिहास में चीन को इन यायावरों से विभिन्न शासन-कालों में बहुत अधिक क्षति पहुँची। यहाँ तक कि आठवीं शताब्दी ई.पू. से ही अपनी प्रजा की रक्षा के लिए चीनी शासकों ने किलेबंदी करना प्रारंभ कर दिया था। तीसरी शताब्दी ई.पू, से इन किलेबंदियों का एकीकरण सामान्य रक्षात्मक ढाँचे के रूप में किया गया जिसे आज 'चीन की महान दीवार के रूप में जाना जाता है। उत्तरी चीन के कृषक समाजों पर यायावरों द्वारा लगातार हुए हमलों और उनसे पनपते अस्थिरता और भय का यह एक प्रभावशाली चाक्षुष साक्ष्य है।
चंगेज़ खान का जीवन-वृत्त
चंगेज्ञ खान का जन्म 1162 ई. के आसपास आधुनिक मंगोलिया के उत्तरी भाग में ओनोन नदी के निकट हुआ था। उसका प्रारंभिक नाम तेमुजिन था। उसके पिता का नाम येसुगेई (Yesugei) था जो कियात कबीले का मुखिया था। यह एक परिवारों का समूह था और बोरजिगिद (Borjigid) कुल से संबंधित था। उसके पिता की अल्पायु में ही हत्या कर दी गई थी और उसकी माता ओलुन-इके (Oelun-eke) ने तेमुजिन और उसके सगे तथा सौतेले भाइयों का लालन-पालन बड़ी कठिनाई से किया था। 1170 का दशक विपर्यायों से भरा था- तेमुजिन का अपहरण कर उसे दास बना लिया गया और उसकी पत्ली बोरटे (Borte) का भी विवाह के उपरांत अपहरण कर लिया गया और अपनी पत्नी को छुड़ाने के लिए उसे लड़ाई लड़नी पड़ी।
विपत्ति के इन वर्षों में भी वह अनेक मित्र बनाने में कायमाब रहा। नवयुवक बोघूरचू (Boghurchu) उसका प्रथम-मित्र था और सदैव एक विश्वस्त साथी के रूप में उसके साथ रहा। उसका सगा भाई (आंडा) जमूका भी उसका एक और विश्वसनीय मित्र था। तेमुजिन ने कैराईट (Kereyite) लोगों के शासक व अपने पिता के वृद्ध सगे भाई तुगरिल उर्फ ओंग खान के साथ पुराने रिश्तों की पुनर्स्थापना की। यद्यपि जमूका उसका पुराना मित्र था, बाद में वह उसका शत्रु बन गया। 1180 और 1190 के दशकों में तेमुजिन ओंग खान का मित्र रहा और उसने इस मित्रता का इस्तेमाल जमूका जैसे शक्तिशाली प्रतिद्वंद्वियों को परास्त करने के लिए किया।
जमूका को पराजित करने के बाद तेमुजिन में काफी आत्म-विश्वास आ गया और अब वह अन्य कबीलों के विरुद्ध युद्ध के लिए निकल पड़ा । इनमें से उसके पिता के हत्यारे, शक्तिशाली तातार केराईट और खुद ओंग खान जिसके विरुद्ध उसने 1203 में युद्ध छेडा। 1206 में शक्तिशाली जमूका और नेमन लोगों को निर्णायक रूप से पराजित करने के बाद तेमुजिन स्टेपी-क्षेत्र की राजनीति में सबसे प्रभावशाली व्यक्ति के रूप में उभरा। उसको इस प्रतिष्ठा को मंगोल कबीले के सरदारों को एक सभा (कुरिलवाई) में मान्यता मिली ओर उसे चंगेज़ खान “समुद्री खान' या 'सार्वभौम शासक ' की उपाधि के साथ मंगोलों का महानायक (Qa'an/Great Khan) घोसीट किया गया।
1206 ई. में कुरिलताई से मान्यता मिलने से पूर्व चंगेज़ खान ने मंगोल लोगों को एक सशक्त अनुशासित सैन्य-शक्ति के रूप में पुनर्गठित कर लिया था जिससे उसके भविष्य में किए गए सैन्य अभियान की सफलता एक प्रकार से तय हो गई। उसकी पहली मंशा चीन पर विजय प्राप्त करने की थी जो उस समय तीन राज्यों में विभक्त था।
वे थे-
- उत्तर-पश्चिमी प्रांतों के तिब्बती मूल के सी-सिआ लोग (Hsi Hsia)
- जरचेन लोगों के चिन राजवंश जो पेकिंग से उत्तरी चीन क्षेत्र का शासन चला रहे थे
- शुंग राजवंश जिनके आधिपत्य में दक्षिणी चीन था।
1209 में सी-सिआ लोग परास्त हो गए। 1213 ई. में चीन की महान दीवार का अतिक्रमण हो गया। 1215 ई. में पेकिंग नगर को लूटा गया। चिन वंश के विरुद्ध 1234 तक लंबी लड़ाइयाँ चलीं पर चंगेज़ खान अपने अभियानों की प्रगति से खूब संतुष्ट था और इसलिए उस क्षेत्र के सैनिक मामले अपने अधीनस्थों की देखरेख में छोड़कर 1216 में मंगोलिया स्थित अपनी मातृभूमि में लोट आया।
1218 ई. में करा खिता (Qara Khita) की पराजय के बाद जो चीन के उत्तर पश्चिमी भाग में स्थित तियेन-शान की पहाडियों को नियंत्रित करती थीं, मंगोलों का साम्राज्य अमू दरिया, तुरान और ख्वारज़म राज्यों तक विस्तृत हो गया। ख्वारज़ञम का सुल्तान मोहम्मद चंगेज़ खान के प्रचंड कोप का भाजक बना जब उसने मंगोल दूतों का वध कर दिया। 1219 और 1221 ई. तक के अभियानों में बड़े नगरों - ओट्रार, बुखारा, समरकंद, बल्ख, गुरगंज, मर्व, निशापुर और हेरात ने मंगोल सेनाओं के सम्मुख समर्पण कर दिया। जिन नगरों ने प्रतिरेध किया उनका विध्वंस कर दिया गया। निशापुर में घेरा डालने के दौरान जब एक मंगोल राजकुमार की हत्या कर दी गई तो चंगेज़ खान ने आदेश दिया कि, “नगर को इस तरह विध्वंस किया जाए कि संपूर्ण नगर में हल चलाया जा सके; अपने प्रतिशोध (राजकुमार की हत्या के लिए) को उग्र रूप देने के लिए ऐसा संहार किया जाए कि नगर के समस्त बिल्ली ओर कुत्तों को भी जीवित न रहने दिया जाए।” मंगोल सेनाएँ सुल्तान मोहम्मद का पीछा करते हुए अज़रबैजान तक चली आईं और क्रीमिया में रूसी सेनाओं को हराने के साथ-साथ उन्होंने कैस्पियन सागर को घेर लिया।
सेना की दूसरी टुकडी ने सुल्तान के पुत्र जलालुद्दीन का अफ़गानिस्तान और सिंध प्रदेश तक पीछा किया। सिंधु कलाकारों द्वारा 'बर्बरें' का नदी के तट पर चंगेज़ खान ने उत्तरी भारत और असम मार्ग से मंगोलिया वापस लोटने का विचार कल्पित चित्र किया परंतु असहाय गर्मी, प्राकृतिक आवास की कठिनाइयों तथा उसके शमन निमित्तज्ञ द्वारा दिए गए अशुभ संकेतों के आभास ने उसे अपने विचारों को बदलने के लिए बाध्य किया। अपने जीवन का अधिकांश भाग युद्धों में व्यतीत करने के बाद 1227 में चंगेज खान की मृत्यु हो गई। उसकी सैनिक उपलब्धियाँ विस्मित कर देने वाली थीं। यह बहुत हद तक स्टेपी-क्षेत्र की युद्ध शैली के बहुत से आयामों को आवश्यकतानुसार परिवर्तन और सुधार करके उसको प्रभावशाली रणनीति में बदल पाने का परिणाम था। मंगोलों और तुर्कों के घुड़्सवारी कौशल ने उसकी सेना को गति प्रदान की थी। घोड़े पर सवार होकर उनकी तीरंदाज़ी का कौशल अद्भुत था जिसे उन्होंने अपने दैनिक जीवन में जंगलों में पशुओं का आखेट करते समय प्राप्त किया था। उनके इस घुड़सवारी तीरंदाजी के अनुभव ने उनकी सैनिक-गति को बहुत तेज़ कर दिया। स्टेपी-प्रदेश के घुडसवार सदैव फुर्तीले ओर बड़ी तेज़ गति से यात्रा करते थे। अब उन्हें अपने आसपास के भूभागों और मौसम की जानकारी हो गई जिसने उन्हें अकल्पनीय कार्य करने की क्षमता प्रदान की। उन्होंने घोर शीत-ऋतु में युद्ध-अभियान प्रारंभ किए तथा उनके नगरों और शिविरों में प्रवेश करने के लिए बर्फ़ से जमी हुई नदियों का राजमार्गों की तरह प्रयोग किया। यायावर लोग अपनी परंपराओं के अनुसार प्राचीरों के आरक्षित शिविरों में पेठ बनाने में सक्षम नहीं थे, पर चंगेज़ खान ने घेराबंदी-यंत्र (Siege-engine) और नेफ्था बमबारी के महत्त्व को शीघ्र जाना। उसके इंजीनियरों ने उसके शत्रुओं के विरुद्ध अभियानों में इस्तेमाल के लिए हलके चल-उपस्कर (Light portable
equipment) का निर्माण किया जिसके युद्ध में घातक प्रभाव होते थे ।


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